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________________ एक नई समस्या फिर खड़ी हो जाती है। महाप्रज्ञ ने विशेष रूप से बतलाया कि हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं है। इससे किसी का भी भला नहीं होता। मानवीय चेतना को झंकृत करने वाले संदेश ने अहमदाबाद के (गुजरात) निवासी हिन्दू-मुस्लिम लोगों के दिलों में भाईचारे और प्रेम के सुमन खिलाये। दांडी-यात्रा एक बार फिर जीवंत उस समय बनी जब आचार्य महाप्रज्ञ अहिंसायात्रा के दौरान असलाली गाँव के 'गांधी हाल' में प्रेक्षा विश्व भारती अहमदाबाद मणिनगर से प्रस्थान कर पधारे। चूँकि साबरमती आश्रम से प्रस्थान कर दांडी यात्रा का प्रथम पड़ाव वहीं हुआ था। स्थान विशेष में तरंगित विचारों को उकेरते हुए महाप्रज्ञ ने कहा-महात्मा गांधी ने अहिंसा के लिए जो किया था, वह विलक्षण था। फिर भी लोग कहते हैं कि उस का क्या हुआ, जो गांधी ने किया था? मनुष्य का स्वभाव है विस्मृति। वह भूल जाता है। यदि विस्मृति नहीं होती और महात्मा गांधी के कार्य को निरन्तर आगे बढ़ाया जाता तो शायद दुनिया में एक चमत्कार हो जाता, हिंसा की बाढ़ रुक जाती। किन्तु कठिनाई है कि आदमी भूल जाता है। महात्मा गांधी थे, तब तक एक दृश्य दिखाई दे रहा था। उनके आभामंडल ने आकृष्ट किया था। जनता उनके पीछे-पीछे घूम रही थी। उनके चले जाने के बाद स्थिति में परिवर्तन आ गया। त्याग, तपस्या, संयम की बात गौण हो गयी। सत्ता का आकर्षण शिरोमणि बन गया और लगा कि महात्मा गांधी भुलाये जा रहे हैं।....आज भी मैं अनुभव करता हूँ कि महात्मा गांधी ने जो अहिंसात्मक प्रतिकार का सूत्र दिया था, महात्मा गांधी ने जो सविनय अवज्ञा आन्दोलन का सूत्र दिया था, महात्मा गांधी ने जो ट्रस्टीशिप का सूत्र दिया था यदि उन सूत्रों की निरन्तरता रहती तो आज समाज बदलता हुआ दिखाई देता। यह महाप्रज्ञ के उदात्त चिंतन का सबूत है। अहिंसा यात्रा के दौरान अनुशास्ता के विचारों में एकाएक परिवर्तन-सा घटित हुआ। अभिनव चिंतन की स्फुरणा हुई। उन्होंने बतलाया अहिंसा यात्रा में क्रमशः अनुभव करते-करते हमें लगा कि जब तक हिंसा के कारणों की खोज नहीं की जाती, हिंसा को रोका नहीं जा सकता। हमनें हिंसा के कारणों की खोज की लोगों ने इसे अहिंसा यात्रा कहा तो मैंने (महाप्रज्ञ) कहा-'नहीं, मैं तो हिंसा की यात्रा कर रहा हूँ। मैं तो हिंसा के कारणों की खोज में निकला हूँ। इस खोज से जो निष्कर्ष निकले, उससे मेरी धारणा बनी की आदमी को बदला जा सकता है। जब तक भूख की समस्या रहेगी, तब तक हिंसा की बाढ़ को रोका नहीं जा सकता। भूखा आदमी सोचने-समझने की शक्ति खो देता है। भूखे व्यक्ति से तो भजन भी नहीं होता। अपने आशय को स्पष्ट करत हुए उन्होंने बताया-गरीबी और रोटी का अभाव भी आदमी को हिंसा के लिए प्रेरित करता है। नक्सलवाद इसी गरीबी और शोषण की आग से निकली हुई चिंगारी है जो आज कई राज्यों को अपनी लपेट में ले रही है। हिंसा की इस समस्या का अगर दंड, भय और शक्तिबल से रोकने का प्रयत्न करेंगे तो इससे बडी भल और कोई नहीं होगी। इस समस्या पर नये ढंग से विचार करने की जरूरत है। चिंतनीय पक्ष यह है कि-जो बड़े कहे जाने वाले लोग हैं, वे तो इस समस्या पर कुछ सोचने और विचार करने की जैसे जरूरत ही अनुभव नहीं करते। वे इससे कोई लेना-देना ही नहीं मानते। वे इस भाषा में सोचते हैं-सरकार का काम है, वह जाने। हत्या, चोरी, लूट, दंगा होता है तो इसकी जिम्मेदारी प्रशासन पर डाल देते हैं। यह नहीं सोचते कि अप्रत्यक्ष रूप से इस समस्या के उभार में उनका कितना हाथ रहा? बात बहुत कटु लगेगी, किंतु हिंसा को बढ़ाने भेद दृष्टि के आधारभूत मानक / 365
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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