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________________ में जितना अमीर लोगों का हाथ है, उतना किसी का नहीं है । अमीर लोगों के कारनामें समाज के गरीब लोगों में प्रतिक्रियात्मक हिंसा की आग सुलगा रहे हैं। उन्हें अपने क्रियाकलाप पर नये सिरे से चिंतन करना चाहिए। 7 हिंसा के कारणों से लोगों को परिचित कराने के लिए ही हमने अहिंसा यात्रा शुरू की है। हिंसा के इतने कारण है कि उन सब पर सबका ध्यान जाना चाहिए। जब तक समाज में बड़े और छोटे, अमीर और गरीब का अंतर रहेगा, हिंसा की बाढ़ को रोका नहीं जा सकता । इस प्रभावी यात्रा के दौरान अनेकबार महाप्रज्ञ ने कहा- हम अहिंसा की कोई नई अवधारणा प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं । अवधारणाएँ सब अपने-अपने स्थान पर हैं। हिंसा के कारणों की विशद व्याख्या विभिन्न संदर्भों में प्रस्तुत की गई। जिसका आंशिक उल्लेख किये बगैर अहिंसा यात्रा का विमर्श अपूर्ण रहेगा । हिंसा के आर्थिक कारण है जीवन की प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति का अभाव, जिसका आधार है असंतुलित अर्थव्यवस्था । अर्थ के अभाव और प्रभाव ने उपभोग प्रधान जीवन शैली और श्रम का शोषण, गरीबी एवं आसक्ति को पैदा किया है। एक और बेरोजगारी दूसरी ओर बाजार पर एकाधिकार की प्रवृति ने अनधिगत शोषण, मिलावट, प्रदर्शन, आर्थिक स्पर्धा को प्रश्रय दिया है। हिंसा के मानसिक कारणों की सूची में प्रमुख है - मस्तिष्कीय असंतुलन। जिसके सहारे पलती है क्रूरता, आग्रहवृत्ति, मानसिक पिछड़ापन, कटुता, मानसिक तनाव, असंयम, असीम महत्त्वकांक्षा । जिसके परिणाम स्वरूप उत्पीड़न, अपमान / तिरस्कार, अशक्य को शक्य बनाने का मनोभाव । हिंसा के भावात्मक कारणों की सूची में प्रमुख है: ग्रंथियों के असंतुलित स्राव एवं कर्म विपाक । इनकी बदौलत पलते हैं - निषेधात्मक भाव, राग द्वेष की प्रवृति, सहिष्णुता का अभाव, आवेश युक्त भावात्मक उत्तेजना, मन और भावों की चंचलता । सबसे समर्थ कारण है भावतंत्र की अशुद्धि जो आवेगों को अनियंत्रित बनाती है । परिणाम स्वरूप करुणा और संवेदनशीलता का भाव तिरोहित हो जाता है। मूर्च्छा की सघनता भय, घुटन / कुण्ठा, व्यसन, दोषारोपण, धोखाधड़ी की भावना पैदा करती है । भावनात्मक तनाव के चलते प्रतिक्रिया, क्रोध, मान, लोभ, अहंकार - ममकार जैसे वैभाविक तत्त्व पैदा होते हैं । हिंसा के वैश्विक कारण है प्रतिशोध की भावना के साथ न्याय का अभाव, पर्यावरण की चेतना का अभाव और आतंकवाद का प्रशिक्षण जिसकी बदौलत विषमता, अशिक्षा, आबादी में वृद्धि की समस्या अनियंत्रित हो रही है । शस्त्रीकरण, मादक द्रव्यों का प्रचुर मात्रा में निर्माण, अकाल और बाढ़ जैसे अनेक वैश्विक हिंसा के कारण हैं इन प्रमुख कारणों के अलावा भी हिंसा के कारण है जैसे- राजनैतिक, व्यावहारिक, सामाजिक, चेतसिक, शारीरिक और वैचारिक जिनकी महाप्रज्ञ ने अपने प्रवचनों में चर्चा की है। 38 इस विमर्श का एक मात्र लक्ष्य था - हिंसा के कारणों के प्रति जनचेतना को जागृत करना । व्यक्ति-व्यक्ति के भीतर सौहार्द, शांति और अहिंसा की चेतना प्रबुद्ध बने इस महान् उद्देश्य से अहिंसा यात्रा में आचार्य महाप्रज्ञ ने लोगों को समझाया · कोई व्यक्ति अपराध करता है उसे किसी जाति या सम्प्रदाय जोड़ना उचित नहीं है । कोई व्यक्ति अन्याय कर रहा है, नियमों का अतिक्रमण कर रहा है उसके प्रति प्रतिशोध के भाव मत रखो। प्रतिकार करो ताकि हिंसा को बढ़ावा न मिले। 366 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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