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________________ उद्देश्य है नकारात्मक भावों को सकारात्मक बनाना। गरीबी, शोषण, अन्याय, अपराध और पर्यावरण प्रदूषण इन सभी प्रश्नों का केवल आध्यात्मिक प्रशिक्षण से निवारण नहीं हो सकता और इन प्रश्नों का हल समाज व्यवस्था के परिवर्तन से भी नहीं हो सकता । इनके निवारण का उपाय है अहिंसक चेतना का जागरण । हिंसा वृद्धि को रोकने, नैतिक मूल्यों के विकास एवं जनजागरण जैसे व्यावहारिक लक्ष्यों के आधार पर इस यात्रा की परियोजना तैयार की गई। 29 परियोजना मात्र से इसके व्यापक उद्देश्यों को जाना जा सकता है। कार्यों की श्रृंखला में महत्त्वपूर्ण कार्य था आम जनता से सीधा संपर्क साधकर उनकी समस्याओं का उचित समाधान करना । अहिंसा यात्रा के दौरान शास्ता ने औपचारिकता से उपरत रहकर हिंसा के मूल कारणों को खोजा और उस पर प्रकाश डाला। अभाव को हिंसा का बड़ा कारण बताया। उन्होंने कहा- रोटी के बिना व्यक्ति का जीवन भारभूत बन जाता है। यात्रा में गाँवों, नगरों में निकटता से यह अनुभव किया- अगर हिंसा को कम करना है, अपराधों को कम करना है, लूट-खसोट, चोरी-डकैती को कम करना है तो उसका एक रास्ता है - समाज व्यवस्था का परिवर्तन । स्वस्थ समाज व्यवस्था का प्रवर्तन । स्वस्थ समाज व्यवस्था वह है, जिसमें आंतरिक परिवर्तन और बाहरी परिवर्तन का संतुलन हो । कोरे बाह्य परिवर्तन से सुधार नहीं होगा, भीतरी परिवर्तन के बिना भी रूपांतरण संभव नहीं है। दोनों का समन्वय जरूरी है । समन्वय स्थापन की दृष्टि से अहिंसा यात्रा के दौरान विशेष प्रयत्न किये गये। गाँवों में गरीबी, शोषण, अन्याय, अशिक्षा, नशा, अपराध और पर्यावरण प्रदूषण - इन समस्याओं को सुलझाने के लिए अहिंसा की चेतना का जागरण और आजीविका की विविधा का प्रशिक्षण अहिंसा यात्रा का प्रमुख कार्य बन गया। यात्रा में शिक्षा, नशामुक्ति, संतुलित आहार, स्वच्छता, स्वास्थ्य, महिला शिक्षा, पर्यावरण चेतना, अंधविश्वास, कुरूढ़ियों के उन्मूलन, अस्पृश्यता निवारण, आजीविका शुद्धि आदि का प्रायोगिक प्रशिक्षण के साथ जन-जन की शिक्षा पर जोर दिया गया । अहिंसा ग्राम निर्माण, आदर्श जिला निर्माण आदि के लिए विचार विमर्श पूर्वक काया कल्प के संकल्प की क्रियान्विति की गई। मनुष्य में अपार शक्ति है - ' शक्ति को पहचानो, जीवन सुधारो, गाँव को आदर्श बनाओ' यह उद्घोष बनाया गया । 30 इन रचनात्मक कार्यों को लेकर चलने वाली अहिंसा यात्रा की निष्पत्तियाँ उन गाँवों, कस्बों, नगरों में देखी गयी जहाँ से यह कारवाँ गुजरा। प्राणवान उपक्रम अहिंसा यात्रा में प्रशिक्षण के कार्य पर विशेष बल दिया गया ऐसा महाप्रज्ञ के शब्दों से परिलक्षित होता-प्रशिक्षण बहुत जरूरी है । हमने जब अहिंसा की यात्रा शुरू की तो यात्रा के साथ-साथ अध्ययन शुरू किया । अहिंसा यात्रा के कार्यकर्ताओं ने पानी, बिजली, रोजगार-धंधा, शिक्षा, आपसी सौहार्द आदि की तालिका बनाई । जहाँ भी जाते उसके आधार पर गाँव का सर्वेक्षण होता । उस क्षेत्र की स्थिति का आकलन करते । निर्धारित बिंदुओं के आधार पर गाँव की समस्याओं और अपेक्षाओं की सूची राज्य शासन तक भी पहुँच जाती ।" इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि प्रशिक्षण के कार्य को किस निष्ठा के साथ संपादित किया गया । विभिन्न क्षेत्रों में अहिंसा प्रशिक्षण को व्यापक संदर्भों में देखा और चलाया जा रहा है। भ्रूणहत्या, नशामुक्ति और दूसरे अभियान भी इसी परिप्रेक्ष्य में हैं। इससे संबंधित अच्छा और रचनात्मक काम देखना हो तो सूरत में जाकर देखें वहाँ जैन ही नहीं, दूसरी कौमों के पटेल आदि लोग अहिंसा प्रशिक्षण भेद दृष्टि के आधारभूत मानक / 363
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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