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________________ अहिंसा प्रशिक्षण की प्रक्रिया को प्रभावी बनाते हुए आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा इसके चार आयाम निर्धारित किये गये हैं। वे इस प्रकार हैं-संवेग अर्थात् भावात्मक परिवर्तन, दृष्टिकोण का परिवर्तन, जीवन-शैली का परिवर्तन तथा व्यवसाय शुद्धि एवं किसी एक प्रकार के व्यवसाय का प्रशिक्षण । महाप्रज्ञ ने बतलाया-इसमें कुछ गांधीवादी संस्थाएं भी हमारा सहयोग कर रही हैं। हम लोग अहिंसा प्रशिक्षण शिविर लगाते हैं। उनमें भावशुद्धि पर विशेष बल दिया जाता है। विचार शुद्धि परिवर्तन के लिए ऐकांतिक आग्रह से बचने के लिए अनेकांत पर विशेष बल दिया जाता है। जीवन-शैली में परिवर्तन के लिए भोगवादी मनोवृति में परिवर्तन के लिए अणुव्रत का प्रचार-प्रसार पहले से भी हो रहा है। व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए खादी, ग्रामोद्योगों के विकास के रूप में कुछ गांधीवादी संस्थाओं का सहयोग मिल रहा हैं। आज कल कम्प्यूटर प्रशिक्षण भी व्यावसायिक प्रशिक्षण की दिशा में एक उपाय हो सकता है। भावों के परिवर्तन के बिना दृष्टिकोण, जीवन-शैली तथा व्यवस्था का भी परिवर्तन नहीं हो सकता। इसलिए भाव परिवर्तन पर विशेष बल दिया जाता है। उद्देश्य एवं आधार अहिंसा प्रशिक्षण के संबंध में योचिसो की जिज्ञासा थी कि ट्रेनिंग का प्रारूप क्या होगा? समाहित करते हुए महाप्रज्ञ ने कहा-सैनिकों को परेड कराई जाती है, व्यायाम कराया जाता है। उसका उद्देश्य सैनिकों के शरीर को मजबूत बनाना है। अहिंसा के लिए मन और चित्त को प्रशिक्षित करना जरूरी है। अहिंसा मजबूत शरीर से नहीं मजबूत मन से फलित होगी। धर्म, अहिंसा और अभय की भावना से व्यक्ति को भावित किया जाए तो अहिंसा के प्रति सघन निष्ठा का उदय सहज बनेगा। इसके विकास के लिए मस्तिष्कीय प्रशिक्षण का उपक्रम अपेक्षित है। कथन में बहुविध तथ्यों का समावेश है। अहिंसा के विकास हेतु आंतरिक बल का विकास, वीरता, पराक्रम, कहीं भी हिंसा के सामने घुटने न टेकने का प्रबल संकल्प, अदम्य आत्म-विश्वास-ये अहिंसा की शर्ते हैं जो अहिंसा प्रशिक्षण से शक्तिशाली बनती हैं। बिना प्रशिक्षण के अहिंसा को तेजस्वी बनाने की बात संभव नहीं है। और न ही मस्तिष्कीय क्षमता के जागरण की बात घटित हो सकती है। आज के मनोवैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि अभी तक मनुष्य के मस्तिष्क का पाँच-छह प्रतिशत ही विकास हो पाया है। शेषभाग को भी जागृत और विकसित किया जा सकता है। इस बिन्दु पर अहिंसा के शोध की, प्रयोग की और प्रशिक्षण की एक अपेक्षा बन जाती है। अहिंसा प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य है-अच्छे व्यक्ति का निर्माण अथवा अहिंसानिष्ठ व्यक्ति का निर्माण। इसका आधारभूत तत्त्व है-हृदय-परिवर्तन। हृदय-परिवर्तन के बिना अहिंसा की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसका वाचक शब्द है भावात्मक परिवर्तन। हृदय हमारे शरीर का वह क्षेत्र है जहाँ भाव जन्म लेते हैं और ये शरीर, वाणी और मन को प्रभावित करते हैं। आयुर्वेद के अनुसार हृदय दो हैं। एक फुफ्फुस के नीचे और दूसरा मस्तिष्क में। मस्तिष्कीय हृदय की पहचान अवचेतक (हाइपोथेलेमस) से की गई है। वह भावधारा का उद्गम स्रोत है। वहाँ भाव जन्म लेते हैं और अभिव्यक्त होते हैं। हिंसा उपजती है भावतंत्र में पश्चात् विचार में उतरती है और फिर आचरण में। अतः अहिंसा प्रशिक्षण का पहला केन्द्र है-भाव-विशुद्धि। ____ भाव-विशुद्धि मस्तिष्कीय शोधन पर निर्भर है। महाप्रज्ञ की दृष्टि में मनुष्य के दिमाग को प्रशिक्षित किए बिना कोई आदमी बड़ा काम नहीं कर सकता। मस्तिष्कीय प्रशिक्षण के अभाव में कोई भी 314 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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