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हो। अगर हिंसा के क्षेत्र में 10-20 लाख सैनिक काम करते हैं तो अहिंसा के क्षेत्र में 10-20 हजार सैनिक भी बनें तो एक नया चमत्कार हो सकता है। महाप्रज्ञ ने मंथन पूर्वक अहिंसा प्रशिक्षण प्रविधि का सूत्रपात किया। इसका आधार बना-सबके संस्कार समान नहीं हैं किन्तु इससे जुड़ा सच यह भी है-बहुत लोगों में अहिंसा के संस्कार को जागृत किया जा सकता है। परिणाम स्वरूप अहिंसा की अमीय धारा प्रवाह में प्रतिष्ठित होगी। पर यह प्रशिक्षण द्वारा ही संभव बन सकता है। जब तक मानवीय मस्तिष्क का परिष्कार नहीं किया जाता, दृष्टिकोण परिवर्तन का अभ्यास नहीं किया जाता, जीवन-शैली का परिवर्तन नहीं किया जाता और जीवन की प्राथमिक आवश्यकता रोटी की पूर्ति नहीं की जाती, तब तक अहिंसा तेजस्वी बने अथवा अहिंसा का प्रवाह निरन्तर चलता रहे, यह कम संभव लगता है। अहिंसा की प्रतिष्ठा में व्यवहारिक तथ्यों का समाकलन है।
अहिंसा प्रशिक्षण का आध्यात्मिक पहलू है-अहिंसा की चेतना को जागृत करना और अहिंसा के संस्कार का निर्माण करना। व्यावहारिक पहलू है-अपेक्षानुसार आजीविका की विधियों का प्रशिक्षण। गरीबी, शोषण, अन्याय, अपराध और पर्यावरण प्रदूषण-इन समस्याओं को केवल आध्यात्मिक प्रशिक्षण से नहीं सुलझाया जा सकता है और समाज व्यवस्था के परिवर्तन से भी नहीं सुलझाया जा सकता है। उन्हें सुलझाने का उपाय है-अहिंसा की चेतना का जागरण और आजीविका की विविधा का प्रशिक्षण-इन दोनों का सहयोग।
प्रशिक्षण के चार आयाम अहिंसा प्रशिक्षण का उपक्रम अस्तित्व में लाया गया। इसकी संकल्पना में बोलता है प्रणेता का मौलिक चिंतन और दृढ़ विश्वास । आचार्य महाप्रज्ञ के शब्दों में अहिंसा जीवन का दर्शन है। वह व्यक्ति के लिए आवश्यक है। उसका अपना अंतर्जगत है। वहां भावों और विचारों का द्वंद है. इसलिए आवश्यक है-अहिंसा।
एक से दो हों वहां अहिंसा की आवश्यकता प्रबल बन जाती है। उसके बिना अभय का वातावरण नहीं होता है और शांतिपूर्ण वातावरण नहीं हो सकता।
हम हिंसा के कारणों की समीक्षा करके ही अहिंसा के विकास की बात सोच सकते हैं हिंसा का अंतरंग कारण है भावात्मक आवेश और आग्रह । उसका बाहरी कारण है रोटी का अभाव-प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति का अभाव। इन कारणों की मीमांसा के आधार पर अहिंसा प्रशिक्षण के चार आयामों की परिकल्पना की गई
आंतरिक परिवर्तन के लिए एक आयाम है-हृदय परिवर्तन। सिद्धांत के अनुरूप जीवन व्यवहार के लिए एक आयाम-अहिंसक जीवन शैली। जीविका नैतिक मूल्यों का हास करने वाली न हो तथा रोटी के अभाव में आदमी को हिंसा की उत्तेजना न मिले इस आधार पर एक आयाम है- सम्यक् आजीविका एवं आजीविका प्रशिक्षण। इनके साथ-साथ एक आयाम है-सिद्धांत और इतिहास। यह एक चतुआयामी उपक्रम अहिंसा के विकास का एक शक्तिशाली साधन बनेगा, यह विश्वास के साथ कहा जा सकता है। इस मंतव्य के अनुरूप अहिंसा प्रशिक्षण का कार्य अभिनव विश्वास के साथ प्रगतिशील बन रहा है।
अहिंसा की तकनीक : अहिंसा प्रशिक्षण | 313