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________________ परिवर्तन हो सके, मुझे नहीं लगता।......हिंसा केवल सीमाओं पर ही नहीं भड़कती है, वह तो प्राणी के मस्तिष्क में पैदा होती है। पहले वह मनुष्य के मस्तिष्क में उपजती है फिर समरांगण में उतरती है। इसलिए अहिंसा के प्रशिक्षण की महत्ता है।7 अहिंसा प्रशिक्षण के द्वारा मस्तिष्कीय धुलाई होती है। हिंसक वृत्तियों को उद्दीपन देने वाला है-एनिमल ब्रेन। इसका परिष्कार और परिशोधन करके हिंसक वृत्तियों के उद्दीपन को रोका जा सकता है। महाप्रज्ञ ने लिखा हमारे मस्तिष्क की बड़ी विचित्र रचना है। इतने प्रकोष्ठ हैं कि हर आदमी सोच ही नहीं सकता। अरबों-खरबों न्यूरॉन्स और उनके कनेक्शन हैं। मस्तिष्क में क्रोध को पैदा करने वाला तंत्र है तो उसे रोकने वाला तंत्र भी है। क्रोध पैदा करने वाला तंत्र ज्यादा सक्रिय होगा तो रोकने वाला तंत्र कहेगा, अभी इतना तेज क्रोध मत करो। इतना करोगे तो तुम्हारे हार्ट पर असर हो जाएगा। ज्यादा गुस्सा आता है तो हार्ट पर असर होना स्वाभाविक है। ज्यादा गुस्से से कुछ लोग मर जाते हैं। इसलिए इतना गुस्सा मत करो, थोड़ा संयम रखो। उत्तेजक और नियंत्रक दोनों तंत्र हमारे भीतर हैं। हिंसा को प्रेरणा देने वाला तंत्र भी हमारे मस्तिष्क में है। शांति और अशांति पैदा करने वाले दोनों तंत्र भी हमारे मस्तिष्क में हैं। जीवन के प्रति सम्मान पैदा करने के लिए यह जरूरी है कि हिंसा, अशांति और उत्तेजना से सक्रिय मस्तिष्क तंत्र को सुलाया जाए तथा जो शांति और अहिंसा का तंत्र सोया पड़ा है उसे जगाया जाए। इस प्रक्रिया में अहिंसा प्रशिक्षण की अहम भूमिका महाप्रज्ञ ने बतलाई है। सिद्धांत की बात मनुष्य के जागृत मन (कांशियस माइंड) तक पहुंचती है। परिवर्तन का क्षेत्र है अन्तर्मन (अनकांशियस माइंड)। प्रशिक्षण द्वारा अन्तर्मन को जागृत किया जा सकता है, व्यवहार को बदला जा सकता है, हिंसा की चेतना का रूपांतरण किया जा सकता है। इसलिए प्रशिक्षण की विधि पर सबको गंभीर चिंतन करना चाहिए। धर्म केवल सिद्धांत की बात न रहे। उसका अवतरण जीवन-व्यवहार में हो, इसकी आज बहुत बड़ी अपेक्षा है। यह चिंतन आचार्य महाप्रज्ञ ने विश्वधर्म सम्मेलन में समवेत प्रबुद्ध लोगों के बीच रखा। समग्र व्यूह रचना विश्व व्यापी समस्याओं के प्रति ध्यान केन्द्रित करते हुए आचार्य महाप्रज्ञ ने बताया-पदार्थ का अभाव पदार्थ का असंविभाग गरीबी की समस्या पैदा कर रहा है। अर्थ का अति संग्रह अथवा अर्थ का प्रभाव अमीरी की समस्या पैदा कर रहा है; निषेधात्मक भाव भावात्मक समस्या पैदा कर रहा है। उन्होंने न केवल समस्या को उकेरा अपित् उनसे मुक्ति पाने का उपक्रम भी बताया निषेधात्मक भावों से मुक्ति पाने के लिए जरूरी है संवेग नियंत्रण का प्रशिक्षण। गरीबी की समस्या से मुक्ति पाने के लिए जरूरी है संयम प्रधान जीवन-शैली का प्रशिक्षण। संविभाग की चेतना के जागरण हेतु संवेग नियंत्रण और संयम की चेतना का विकास जरूरी है। इन सूत्रों के द्वारा विश्व व्यापी अशांति पर नियंत्रण स्थापित कर शांति का मार्ग प्रशस्त किया जाये यह विश्व चेतना की पुकार है। अहिंसा के प्रशिक्षण की आधारभूमि सम्यक् दर्शन है। दृष्टिकोण में बदलाव। वस्तु-जगत् और भाव-जगत् दोनों सच्चाई है। अहिंसा प्रशिक्षण का संबंध इन दोनों सच्चाइयों से जुड़ा हुआ है चूंकि वस्तु जगत् में परिवर्तन नहीं होता तो हिंसा बढ़ेगी और भाव-जगत् में परिवर्तन नहीं होता है तो अहिंसा की तकनीक : अहिंसा प्रशिक्षण | 315
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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