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________________ अहिंसक समाज की परिकल्पना महत्त्वपूर्ण है पर इसकी क्रियान्विति का प्रश्न बड़ा जटिल है। इस जटिलता का केन्द्र बिन्दु है सामाजिक मूल्यों की बद्धमूलता। जब तक इनमें परिवर्तन घटित नहीं होगा अहिंसक समाज संरचना मात्र कल्पना बनीं रहेगी । आचार्य महाप्रज्ञ ने लिखा- 'अहिंसक समाज की संरचना के सामने सबसे बड़ी समस्या है -मूल्यों का परिवर्तन । श्रम, वस्तु और संग्रह के मूल्य • बदले बिना अहिंसक समाज रचना की संभावना नहीं की जा सकती।' उन्होंने इस सच्चाई को उकेरा कि 'अहिंसक समाज की स्थापना में सबसे बड़ी बाधा है स्वार्थ । वर्तमान की स्थिति में मनुष्य की स्वार्थवृत्ति को बढ़ने का अवसर मिला है। व्यक्ति इतना स्वार्थी हो गया कि उसे अपने पासपड़ोस में रहने वालों के सुख-दुःख से कोई मतलब नहीं । ऐसी स्थिति में मूल्यों का अवमूल्यन होना स्वाभाविक है। उनका स्पष्ट अभिमत है कि स्वार्थ शासित समाज में नैतिकता श्रम और स्वावलंबन का मूल्य बढ़ जाता है।' यह मंतव्य समाज के प्रति सापेक्ष सोच का परिचायक है । समता दृष्टि से निस्पन्न अहिंसक समाज संरचना का विचार महाप्रज्ञ की विराट् विचार धारा का नियामक है । वे कहते - अहिंसक समाज और हिंसक समाज- ये दोनों सापेक्ष शब्द हैं। कोई भी समाज ऐसा नहीं हो सकता, जो केवल हिंसा या अहिंसा के आधार पर चल सके । जीवन-निर्वाह के लिए हिंसा करनी पड़ती है । अपनी और अपने व्यक्तियों तथा वस्तुओं की रक्षा के लिए हिंसा की बाध्यता आती है। इस स्थिति में विशुद्ध अहिंसक समाज की कल्पना कैसे की जा सकती है। समाज हिंसा और अहिंसा दोनों के योग से चलता है। कोरी अहिंसा के बल पर चल नहीं पाता और कोरी हिंसा के बल पर वह टिक नहीं पाता । यह सच्चाई का निदर्शन है । T स्वाभाविक जिज्ञासा है यदि समाज हिंसा-अहिंसा दोनों के योग से ही चलता है तो फिर अहिंसक समाज की कैसी कल्पना ? समाधान स्वरूप जिस समाज में नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा होती है, मानवीय उसूलों को अपनाया जाता है तथा हिंसा के अल्पीकरण पर बल दिया जाता है वह समाज अहिंसक समाज कहा जाता है । क्रियान्विति में उनका कहना है-समाज व्यवस्था अहिंसा के अनुरूप हो । व्यवस्था अहिंसात्मक नहीं हो और परस्पर सहयोग की भावना भी नहीं होती है तो समाज में हिंसा बढ़ती है और आतंक फैलता है । अहिंसात्मक समाज व्यवस्था से ही सामाजिक विषमताओं को मिटाया जा सकता है। उन्होंने अपने जन्म भूमि टमकोर समाज के उच्च और सम्पन्न वर्ग को अपनी सीमा में आगाह किया कि वे अपने गाँव और जन्मभूमि को भूलें नहीं तथा ग्रामोदय के लिए शिक्षा, चिकित्सा आदि सामाजिक व्यवस्थाओं के लिए एक संगठन तैयार करें जिसमें आम जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ समाज में अहिंसा और नैतिकता का भी विकास हो ।" स्पष्ट है कि आचार्य महाप्रज्ञ की सोच समाज का पथ-दर्शन करने में कितनी पैनी और प्रखर थी । ग्राम-व्यवस्था अहिंसक समाज की मूल इकाई ग्राम-व्यवस्था है। ग्राम - निर्माण का सपना अहिंसक विचारधारा पर बुना गया है। अतः ग्रामीण स्वरूप को जाने बगैर अहिंसक समाज को जानना अधूरा होगा। गांधी ने आदर्श ग्राम की परिकल्पना की । उसका संरचनात्मक, संगठनात्मक ढ़ांचा ऐसा होगा जिसमें सभी को विकास के समुचित अवसर उपलब्ध होंगे। गाँव का प्रत्येक व्यक्ति खुशहाली का जीवन जीयेगा क्योंकि वह सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक दबाव से मुक्त होगा। उन्होंने आत्म विश्वास के साथ कहा कि यदि आदर्श गांव का मेरा स्वप्न पूरा हो जाय तो भारत के सात लाख गाँवों में से हर 226 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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