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________________ के प्रत्येक सदस्य को स्वयं के बारे में सोचने के लिए बाध्य करता | समूहगत जीवन को आनन्दमय बनाने के लिए समाज को बदलना जरूरी है। हिंसक समाज में कब तक व्यक्ति अहिंसक रह सकता है। समूचे समाज के लिए अहिंसा का पालन करना आवश्यक है, चूंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। गांधी का यह मौलिक चिंतन समाज में नई चेतना का संचार करने वाला है। उन्होंने मनुष्य को सामाजिक प्राणी कहा इसलिए भी उसका परिष्कृत वृत्तिवान् बनना जरूरी है। मानवीय चेतना के परिवर्तन में उनका दृढ़ विश्वास था । अपने इस विश्वास के आधार पर उन्होंने कहा कि अहिंसा व्यक्तिगत गुण नहीं है, बल्कि एक सामाजिक गुण है जिसको दूसरे गुणों की तरह विकसित करना चाहिए। इसमें कोई शक नहीं कि समाज अपने आपस के कारोबार में अहिंसा का प्रयोग करने से ही व्यवस्थित होता है। मैं जो कहना चाहता हूँ वह यह है कि इसे एक बड़े राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय पैमाने पर काम में लाया जाय ।" आशयतः वे अहिंसा के सामाजिक आयाम का विस्तार राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पैमाने पर व्यापक देखना चाहते थे । 1 इस वैज्ञानिक प्रगति के युग में मानव जाति की रक्षा हेतु समाज रचना कैसी हो ? गांधी कहते हैं-बुनियादी सवाल हिंसा और अहिंसा के बीच चुनाव का नहीं । मुख्य बात तो यह है कि अगर संसार को जिन्दा रहना है तो विज्ञान को अहिंसा के साथ जुड़ जाना होगा । विज्ञान और हिंसा साथ-साथ नहीं चल सकते। दोनों मिलकर मनुष्य जाति को मिटा देंगे । आधुनिक विज्ञान और यान्त्रिक प्रगति से मानवता का लाभ तभी हो सकता है, जब समाज रचना अहिंसा पर आधारित होगी । अब मनुष्य जाति के लिए दूसरा कोई चारा नहीं है । अहिंसा मानव-जाति के संरक्षण में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। चूँकि यह मात्र वैयक्तिक धर्म नहीं सामाजिक धर्म है ।" सामाजिक धर्म के रूप में अहिंसा की अनिवार्य का निदर्शन उनकी अभिनव सोच का परिचायक है । इस संबंध में महाप्रज्ञ का अभिमत है कि समाजविकास के लिए अहिंसा नितान्त आवश्यक । यह केवल धर्म का ही प्रमुख तत्व नहीं है । इसका समाज व्यवस्था और अर्थ-व्यवस्था के साथ भी गहरा संबंध है। जहां अहिंसा का विकास होगा, वहां शांति रहेगी। जहाँ शान्ति होगी, वहाँ विकास होगा। विकास की अनिवार्य शर्त है शांति और शान्ति की अनिवार्य शर्त है अहिंसा । दो महायुद्धों के बाद पश्चिमी जगत् में यह समझ विकसित हुई है-विकास के लिए शान्ति अनिवार्य है। महाप्रज्ञ का मन्तव्य है कि 'मानसिक शान्ति के लिए अहिंसा अनिवार्य है किन्तु सामाजिक विकास और विकासोन्मुख गति के लिए भी वह कम अनिवार्य नहीं है । इस अनिवार्यता की अनुभूति कराना उतना ही अनिवार्य है जितना कि अहिंसा अनिवार्य है।' जहां तक विज्ञान का प्रश्न है महाप्रज्ञ ने इसे समाज विकास की मौलिक कड़ी के रूप में स्वीकारा हैं। उनके शब्दों में अहिंसा का तात्पर्य है मैत्री का विस्तार । एक समय था जब छोटी-छोटी बातों पर विरोध का वातावरण बन जाया करता था । विज्ञान ने अनेक रहस्यों की खोज की। उससे कई तरह की समस्याएं भी पैदा हुईं। उन समस्याओं का समाधान विज्ञान के पास नहीं है । उनके समाधान के लिए अध्यात्म की शरण लेनी पड़ रही है । दूसरी और अध्यात्म के सूक्ष्म तत्ववेत्ता आचार्यों ने हजारों वर्ष पूर्व बताया सूई की एक नोक जितने स्थान पर अनंत जीवों की उपस्थिति । यह बात आज वैज्ञानिक उपकरणों से सिद्ध हो गई कि बैक्टीरिया या जीवाणु सुई की नोक पर करोड़ों नहीं अरबों की संख्या में हो सकते हैं। दोनों ने एक दूसरे को उपकृत किया है । मेरा विश्वास है कि अध्यात्म और विज्ञान का अगर समन्वय हो तो एक नया संसार निर्मित हो सकता है। समस्या मुक्त संसार 199 अहिंसक समाज : एक प्रारूप / 225
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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