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________________ का अपहरण, अधिकार और स्वत्व का अपहरण, जीविका का विच्छेद और साम्राज्यवादी मनोवृत्ति-यह सारा आक्रामक हिंसा का परिवार है । आक्रामक हिंसा से मुक्त समाज को अहिंसक समाज की अभिधा से अभिहित किया जा सकता है। उन्होंने बताया 'समाज व्यवस्था का मंत्र है- अहिंसा । अहिंसा का अर्थ है अभय का विकास और अनाक्रमण का विकास । यह जंगल का कानून है कि एक शेर दूसरे प्राणियों को खा जाता है। एक बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है, यह समुद्र का कानून है । जहाँ भय होता है वहाँ समाज नहीं बनता। समाज बने और चले, समाज व्यवस्था स्थाई रहे, उसके लिए दो अनिवार्य शर्तें हैं- 'अभय और अनाक्रमण । इन दोनों का समुच्चय है अहिंसा । ४४ अहिंसक समाज को आकार देने वाले ये प्रमुख घटक हैं । इनके साथ आचार्य उमास्वाति के परस्परता के सूत्र को उद्धृत किया है। आचार्य उमास्वाति ने दर्शन जगत् को एक महत्त्वपूर्ण सूत्र दिया । वह समाज व्यवस्था के क्षेत्र में भी बहुत मूल्यवान् है । वह सूत्र है- 'परस्परोपग्रहो जीवानाम्' अर्थात् परस्पर एक दूसरे को सहारा देना। समाज का अर्थ है संबंधों का जीवन। शान्तिपूर्ण संबंधों में समाज फलता-फूलता है । सह-अस्तित्व के संदर्भ में यह सूत्र अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। औद्योगिक जगत् में, व्यावसायिक जगत् में, शिक्षा के जगत् में सब जगह झगड़ा चल रहा है और इसका कारण है - परस्परता की कमी । अहिंसा विकास का सह-अस्तित्व महत्त्वपूर्ण सूत्र बनता है। जब तक सह-अस्तित्व की भावना का विकास नहीं होता तब तक अहिंसा का अर्थ पूरा समझ में नहीं आता । एक साथ रहना है और एक साथ जीना है तो आश्वास, विश्वास और अभय के वातावरण का निर्माण करना होगा। हमारी अहिंसा, आपकी अहिंसा प्राणी मात्र के साथ जुड़े यह आवश्यक है । अहिंसा का दूसरा नाम है-समृद्धि । वर्तमान समाज समृद्ध नहीं है, दरिद्र है । समाज का मूल आधार है - सह अस्तित्व । जिस समाज में उनका विकास नहीं होता, उसे स्वस्थ और समृद्ध समाज नहीं कहा जा सकता। 89 अहिंसा के आलोक में स्वस्थ समाज का चित्रण मौलिक है- 'वह समाज स्वस्थ है, जिसमें अपराध, प्रवंचना, अन्याय, लूट खसोट, संघर्ष आदि नहीं होते । जब लोभ और स्पर्धा की भावना प्रबल बनती है, समाज का शरीर अनेक रोगों से आक्रान्त हो जाता है । आज हॉस्पिटल, पागलखानों और कारखानों की संख्या बढ़ती जा रही है, क्योंकि समाज रुग्ण है । यदि हमें समाज को स्वस्थ बनाना है तो नैतिक मूल्यों को प्रतिष्ठित करना होगा । नैतिकता विहीन धर्म वर्तमान युग की सबसे बड़ी समस्या है।' महाप्रज्ञ ने इस तथ्य को प्रकट किया कि जहां धर्म के साथ नैतिकता नहीं होती, वहां हिंसा बढ़ती है, आतंक बढ़ता है । अतः स्वस्थ समाज के लिए व्यापार और व्यवहार में नैतिकता का अवतरण जरूरी है। समाज की स्वस्थता का यह आधारभूत तत्व है सभी के भीतर ये भाव जगे कि हमारा अस्तित्व दूसरों के कारण ही टिका हुआ है। समाज की स्वस्थता और शक्ति संपन्नता में परस्पर संबंध है। आचार्य महाप्रज्ञ ने बतलाया - समाज तीन शक्ति स्त्रोत हैं- 'अनुशासन की चेतना, चरित्रबल और साधन शुद्धि का विवेक ।' जिस समाज के शक्ति स्रोत शून्य बिन्दु के आसपास चले जाते हैं अथवा शून्य हो जाते हैं, वह समाज शक्ति संपन्न नहीं हो सकता और जो शक्ति संपन्न नहीं होता, वह स्वस्थ नहीं हो सकता । स्वस्थ समाज की पृष्ठभूमि में वे समाजाभिमुखी अहिंसा पर बल देते है । यदि मनुष्य का शोषण हो जाए, उत्पीड़न हो जाए, तो शायद उतनी चिंता नहीं होती । किसी का गला काटने पर भी संभवतः इतना प्रकंपन नहीं होता जितना एक चींटी को मार देने पर हो जाता है।" यह सच्चाई का निदर्शन है जो समाज 224 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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