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________________ उसे धैर्यवान् होने का साहस दीजिए और शौर्य के लिए धैर्य की शिक्षा दीजिए। उसे अपने कृत्यों में गरिमामय आस्था बोध का पाठ पढ़ाइयेगा, तभी वह मानवता की गरिमा में विश्वास करेगा।'59 समत्व दृष्टि से देखा जाये तो पत्र के आशय में गांधी की बुनियादी शिक्षा एवं महाप्रज्ञ के जीवन-विज्ञान आयाम का स्पष्ट निदर्शन है। बुनियादी शिक्षा में रोजगार मूलक दक्षता पर विशेष रूप से बल दिया गया है। महाप्रज्ञ की स्पष्ट अनुशंसा उनके मंतव्य में जाहिर है-आजकल कुछ ऐसा हो गया कि बौद्धिक प्रशिक्षण ज्यादा दिया जाने लगा है और रोजगार प्रशिक्षण की बात गौण होती जा रही है। पुराने जमाने में अपरा विद्या के अंतर्गत रोजगार की बात मुख्य रूप से शामिल थी। अनिवार्य रूप से रोजगार का प्रशिक्षण दिया जाता था। अब वह क्रम भंग हुआ है। शिक्षा के साथ रोजगार की कला का प्रशिक्षण आवश्यक है। इस विषय में महाप्रज्ञ जी का स्पष्ट कथन है-मैं उस विश्वविद्यालय को महत्व नहीं देता जहां शिक्षा की सैंकड़ों ब्रांचेज हैं किंतु रोजगार और चरित्र का शिक्षण नहीं मिलता। विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त कर निकलने वाला परावलंबी बना रहा तो फिर उस विश्वविद्यालयी शिक्षा का क्या औचित्य ? कथन के संदर्भ में जाहिर है कि महाप्रज्ञ ने शिक्षा के साथ रोजगार एवं चरित्र विकास को महत्व दिया है। मानव अस्तित्व और विकास हेतु अहिंसा और शिक्षा के प्रश्न को एक साथ देखना होगा। उन्होंने कहा शिक्षा और अहिंसा में एक गहन सम्बन्ध को परखना होगा। जिससे अस्तित्व और विकास-दोनों की परम्परा सुरक्षित रह सके। इस संदर्भ में मूल्यपरक शिक्षा अथवा जीवन-विज्ञान वर्तमान युग की अनिवार्यता है। अहिंसा सर्वोपरि मूल्य है। अहिंसा के प्रतिष्ठित होने पर शेष सब मूल्य प्रतिष्ठित हो जाते हैं। अहिंसा के अभाव में शेष सब मूल्य विघटित हो जाते हैं। इस सच्चाई को शिक्षा के साथ जोड़कर महाप्रज्ञ ने समाधान की नई मिसाल कायम की है। अहिंसा के क्षेत्र में अनेक प्रयोग चल रहे हैं किन्तु वे उनकी दृष्टि में व्यावहारिक नहीं हैं वे मात्र अहिंसा की व्यावहारिक प्रयोग भूमियां हैं। जब तक शिक्षा के साथ अहिंसा के प्रशिक्षण की बात नहीं जुड़ेगी तब तक इसका मौलिक स्वरूप सामने नहीं आ सकता। अहिंसा के प्रशिक्षण का सूत्र है-हिंसा के बीजों को प्रसुप्त बनाकर अहिंसा के बीजों को जागृत करना । अहिंसा के बीज बोने के लिए प्रशिक्षण बहुत ही आवश्यक है। सामाजिक स्वास्थ्य, वैयक्तिक स्वास्थ्य और मानसिक शांति के लिए अहिंसा का प्रशिक्षण सर्वाधिक उपयोगी है। इसका समायोजन स्कूली शिक्षा के साथ महत्त्वपूर्ण है। लक्ष्य की संपूर्ति में आचार्य महाप्रज्ञ ने जीवन-विज्ञान के प्रयोगात्मक पक्ष में प्रेक्षाध्यान, आसन प्राणायाम के साथ-साथ अनुप्रेक्षाओं पर विशेष बल दिया है। अनुप्रेक्षा को वैज्ञानिक भाषा में AutoSuggestion कहा जा सकता है। दूसरे के द्वारा दिया गया Suggestion चेतन मन तक ही पहुचता अवचेतन मन तक पहंचने के लिए Auto-Suggestion काफी प्रभावकारी रहता है। जहां-जहां ये प्रयोग चल रहे हैं वहां बहुत बड़ा परिवर्तन हो रहा है तथा प्रेक्षाध्यान, जीवन-विज्ञान की मांग बढ़ती जा रही है। हमें यह भी पता चलता है कि जिन स्कूलों में नियमित रूप से जीवन-विज्ञान का प्रयोग किया जा रहा है वहाँ के Result में काफी परिवर्तन आया है। महाप्रज्ञ ने संकल्प शक्ति और भावनात्मक विकास के प्रयोग जोड़कर नैतिक शिक्षा एवं अहिंसक व्यक्तित्व निर्माण को नया आयाम दिया है। आचार्य महाप्रज्ञ ने बलपूर्वक कहा-शिक्षा के साथ संयम के पाठ को अनिवार्य रूप से जोड़ा अहिंसा की मूल इकाई : व्यक्ति / 211
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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