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________________ सूत्र ने बहुत भ्रांतियां पैदा की हैं। भारतीय चिंतन का सूत्र है-जैसी आस्था, जैसा संकल्प होता है, वैसा आदमी होता है। जीवन-विज्ञान का उपक्रम आस्था उत्पत्ति का स्रोत है। प्रश्न है हिंसा के संस्कार का। यह बड़ी बाधा है कि हिंसा के अपने संस्कार हैं। हम परिवर्तन की, बदलने की बात सोचते हैं किन्तु प्रत्येक व्यक्ति के अपने-अपने कर्म जनित संस्कार होते हैं। फिर भी हम निराश न हों। हमारी अपनी आस्था यह होनी चाहिए कि प्रयोग के द्वारा, प्रयत्न के द्वारा, अभ्यास के द्वारा-संस्कार को भी परिष्कृत किया जा सकता है। अपेक्षा है-एक नये संकल्प व नयी आस्था के निर्माण की और वह बचपन से ही, शिक्षा के क्षेत्र में हो, धर्म के क्षेत्र में हो और अध्यापक या धर्मगुरु के द्वारा हो। शिक्षा के क्षेत्र में यदि आस्था के कुछ बीज बोने की बात सोची जाए तो शायद सामाजिक मूल्यों के विकास की बात आगे बढ़ सकती है, उसका सुपरिणाम आ सकता है। यह मौलिक चिंतन शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन की नई संभावनाओं को उजागर करता है। उनका यह विचार किससे-कैसे प्रभावित होकर उद्भूत हुआ कहना कठिन है। आचार्य महाप्रज्ञ ने अपने शिक्षा संबंधी विचारों में अब्राह्म लिंकन द्वारा अपने पुत्र के अध्यापक को लिखा गया पत्र उद्धृत किया है। अब्राह्म लिंकन ने चाहा-मेरा पुत्र स्मृति संपन्न होने के साथ-साथ बुद्धिमान और प्रज्ञावान भी बने। उन्होंने अपने पुत्र की शिक्षा के संबंध में अध्यापक वर्ग को जो पत्र लिखा, उसमें स्थितप्रज्ञ का संपूर्ण दर्शन समाहित है। वह शिक्षा जगत् का एक ऐतिहासिक और महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है। पत्र के बोल हैं 'मेरे पुत्र को शिक्षा ग्रहण करनी है। मैं जानता हूं कि प्रत्येक व्यक्ति सही नागरिक नहीं होता है और न ही सब छोटे से बड़े होकर सत्य के पुजारी होते हैं किन्तु कृपया मेरे बच्चे को ऐसी शिक्षा दीजिएगा कि वह प्रत्येक दुष्ट व्यक्ति के लिए विवेकवान संघर्षवादी नायक बने। मेरे बच्चे को यह भी बतलाइयेगा कि जहां शत्रु होते हैं, वहां मित्र भी हैं। मैं जानता हूं कि उसे इस तरह की शिक्षा प्राप्त करने में समय लगेगा। मेहनत से कमाया हुआ एक डॉलर, पांच पौंड से अधिक होता है। उसे जीवन में हारने और जीतने के गौरव को सहर्ष स्वीकार करने की भी शिक्षा दीजियेगा। उसे ईर्ष्या से दूर रखने का प्रयास कीजिए। कृपया उसे मौन होकर हंसने के रहस्य को सिखाइयेगा, उसे किताबों के आश्चर्यमय जगत् से परिचित कराइयेगा और पहाड़ों पर खिले हुए फूल के चिरन्तन रहस्य को भी बतलाइयेगा। उसे यह सिखाइयेगा कि नकल करने से सम्मानपूर्वक असफल होना अधिक गरिमामय है। उसे बतलाइयेगा कि असफलता के कारण जो आँसू टपके उसमें कोई लज्जा नहीं है-उसे यह भी बतलाइयेगा-कि चाहे दुनिया उसे गलत समझे, फिर भी अपने ऊपर भरोसा रखे। उसे भद्र लोगों के साथ भद्रता और दुष्टों के साथ सख्ती से पेश आना चाहिए। मेरे पुत्र को बराबर बताते रहियेगा कि वह भीड़ का एक आदमी न बने। उसे बतलाइयेगा कि वह सबकी तो सुने लेकिन सत्य की चलनी से छानकर उसे सुने और देखे फिर ऐसे सत्य में जो भलाई हो, उसे ही ग्रहण करे। यदि आपके लिए संभव हो तो उसे दुःख के समय हंसना और सुख-दुःख बोध से ऊपर उठने की सीख दीजिएगा। कृपया उसे अधिक मधुरता से बचने को कहियेगा। उसे यह भी बतलाइयेगा कि अपनी बुद्धि एवं अपना पसीना बेचते समय सबसे अधिक कीमत लगाने वाले को ही बेचे, किन्तु अपने हृदय और आत्मा के मल्य को भी समझे। लोहा आग में जलने से मजबूत होता है, इसलिए उसे स्नेह का ताप दीजिए, केवल लाड़ नहीं। 210 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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