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________________ महाप्रज्ञ ने बताया हमारे मस्तिष्क में अनेक प्रकोष्ठ हैं। देखना यह है कि किसका स्विच ऑन कर रहे हैं? क्रूरता का स्विच ऑन हो गया तो आदमी शोषण करने लगेगा। यदि करुणा, अहिंसा, मैत्री का स्विच ऑन हो गया तो मनुष्य दुनिया का श्रेष्ठ प्राणी बन जाएगा। आज अच्छे आदमी की जरूरत है। अच्छा आदमी होना मुश्किल है। जिसके हृदय में अहिंसा, करुणा, मैत्री और प्रेम नहीं है, वह धनवान या राजनेता तो हो सकता है, किन्तु अच्छा आदमी नहीं हो सकता। हिंसा प्रशिक्षण की अनिवार्यता प्रकट की-जब तक शिक्षा के साथ प्रारंभ से ही बच्चों में अहिंसा के संस्कार और आवेश नियंत्रण की विधि नहीं सिखाई जाएगी, तब तक आतंकवाद को रोकने की बात सार्थक नहीं होगी। आतंकवाद को रोकने के लिए आज अहिंसा प्रशिक्षण की सर्वाधिक अपेक्षा है। जीवन-विज्ञान का उद्देश्य जीवन-विज्ञान के मुख्य उद्देश्य हैं. स्वस्थ व्यक्तित्व का निर्माण, जिसमें शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक एवं सामाजिक विकास का संतुलन हो। नए समाज का निर्माण-हिंसा, शोषण एवं अनैतिकता से मुक्त समाज का निर्माण। नई पीढ़ी का निर्माण-ऐसी पीढ़ी का निर्माण जो आध्यात्मिक भी हो एवं वैज्ञानिक भी। ऐसे आध्यात्मिक वैज्ञानिक व्यक्तित्व का निर्माण। इन उद्देश्यों की संपूर्ति हेतु जीवनविज्ञान के सम्पूर्ण पाठ्यक्रम और प्रशिक्षण के लिए प्रयोग प्रस्तुत किए हैं। सैद्धांतिक प्रशिक्षण के साथ-साथ प्रायोगिक प्रशिक्षण और नियमित अभ्यास इसके महत्त्वपूर्ण पहलू है। विद्यार्थी के जीवन में परिवर्तन घटित हो इसके लिए अनेक प्रयोग निर्धारित किए गये हैं। उनका सचित्र अवलोकन जीवन-विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों में किया जा सकता है। जीवन-विज्ञान प्रयोग-प्रशिक्षण में शिक्षा के साथ अहिंसा का विकास निहित है। अहिंसा का मुख्य तत्त्व है-स्व-नियंत्रण, अपने आप पर नियंत्रण। अपने आवेशों पर नियंत्रण किए बिना अहिंसा की कल्पना नहीं की जा सकती। हमारे अनियन्त्रित आवेश ही हमारी वृत्तियों को हिंसक बनाते हैं। जीवन-विज्ञान का प्रयोग स्व-नियंत्रण का प्रयोग है, इसके द्वारा व्यक्ति अपने आवेगों पर नियंत्रण प्राप्त करने की कला सीखता है। नियंत्रण का फलित है-अपने प्रति अहिंसक होना। अहिंसा के सिद्धांत को जीवन-विज्ञान के संदर्भ में एक नया मोड़ दिया गया-तुम दूसरे की बात छोड़ो, अपने प्रति अहिंसक बनों; अगर तुम अपने प्रति अहिंसक बनोंगे तो इसका पहला परिणाम होगा-तुम आत्महत्या से बच जाओगे। जिसने अपने आवेगों पर नियंत्रण करना सीख लिया, वह अपने प्रति अहिंसक बन गया, वह दूसरों के प्रति भी अहिंसक बन गया। जीवन विज्ञान भीतर की दुनिया से परिचय कराता है। भीतर की दुनिया में जाकर हम अपने भावों का परिष्कार कैसे करें, यह सिखाता है। यह अच्छी आदतों के निर्माण में सहायक है। हम केवल दूसरों के प्रति उसे अहिंसक बनाएंगे तो वह बन नहीं पाएगा। क्योंकि भीतर में तो आग लग रही है, भट्टी जल रही है और बाहर से शांति की बात करें, यह कैसे सम्भव है? पहले अपने भीतर की आग को शांत करना है, उस भट्टी को बुझाना है। वह बुझेगी तो अपने आप शांति हो जाएगी। शांति के लिए अलग से प्रयत्न नहीं करना पड़ेगा। शिक्षा के सामने वैयक्तिक परिवर्तन का मौलिक मुद्दा है। ‘आदमी परिस्थिति की उपज है' अहिंसा की मूल इकाई : व्यक्ति / 209
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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