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________________ ‘ट्रांसफार्मेशन ऑफ कांशियसनेस' चेतना का रूपांतरण कैसे हो? यह मुख्य बात हमारे सामने 1 रहे । जीवन-विज्ञान का प्रशिक्षण इसे समाहित करने का उपक्रम बतलाता है । हमारी अंतःस्त्रावी ग्रंथियां जो हमारे भाव और व्यवहार को प्रभावित करती है, उन्हें यौगिक प्रयोगों द्वारा संतुलित बनाया जाता है । हमारा नाड़ीतंत्र या नर्वस सिस्टम भी हमारे भाव और व्यवहार को, चरित्र को प्रभावित करता है । जिसका पैरा सिंथेटिक नर्वस सिस्टम ताकतवर है, वह विनीत भद्र और अनुशासित रहेगा। जिसका सिंपेथेटिक नर्वस सिस्टम ज्यादा ऐक्टिव हैं, उदंड, उच्छृंखल और अविनीत होगा। इन पर प्रयोगों द्वारा नियंत्रण स्थापित किया जाता है । मंतव्य को अधिक स्पष्ट करते हुए महाप्रज्ञ ने कहा- हमारे मस्तिष्क में बहुत सारे प्रोटीन्स बनते हैं । इन्हें न्यूरो ट्रांसमीटर कहा जाता है। ये न्यूरो ट्रांसमीटर हमारे व्यवहार और आचरण का नियमन करते हैं। परिवार में सब बच्चे हैं। कुछ उद्दण्ड, उपद्रवी और शैतान प्रकृति के होते हैं। सभी को एक जैसी शिक्षा दी जाती है । किन्तु सब उसका पालन समान रूप से नहीं करते। उसका कारण यही है कि उनके भीतर बन रहे प्रोटीन में अंतर है । शरीर विज्ञान की दृष्टि से उनके अंतःस्त्रावी ग्रंथियों के स्त्राव में जरूर कोई असमानता है, कोई नाड़ीतंत्रीय असंतुलन है । ..... शिक्षा शास्त्रियों का कर्त्तव्य है कि वे शिक्षा नीति का निर्धारण करते समय सभी पक्षों पर समान रूप से विचार करें, उस पर ध्यान दें। सर्वांगीण दृष्टि से विचार न करने का परिणाम यह है कि इतनी ऊँची शिक्षा के बावजूद जो स्तर होना चाहिए, वह देखने में नहीं आ रहा है। पदोन्नति और दूसरे मुद्दों को लेकर बड़े-बड़े वैज्ञानिक आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं । परीक्षा में अनुतीर्ण विद्यार्थी ने ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली। ऐसा क्यों होता है। इसका एक मात्र कारण यही है कि संवेगों पर नियंत्रण नहीं है । प्रतिकूल परिस्थिति को झेलने की क्षमता नहीं है। यह कला आती है, अंतश्चेतना के जागरण से, भावधारा के परिष्कार से 154 आन्तरिक रसायन हमारे भाव और व्यवहार के लिए उत्तरदायी है । अंतःस्रावी रसायन (हार्मोन) नाड़ीतंत्र के साथ अन्तक्रिया करते हैं । वे नाड़ीतंत्र के अनेक कार्यों का नियमन करते हैं। मुख्यतः नाड़ीतंत्र के स्वायत्त नाड़ी विभाग पर वे प्रभाव डालते हैं । अत्यधिक दबावपूर्ण परिस्थितियों से तनाव बढ़ता है, तनाव की उग्र स्थिति से अंतस्रावी ग्रंथितंत्र पर अतिरिक्त भार पड़ता है। अनुकम्पी और परानुकम्पी नाड़ीतंत्र का इससे संतुलन बिगड़ जाता है । इस स्थिति से अनुकम्पी नाड़ीतंत्र का प्रभुत्व बढ़ जाता है । शिक्षित और विद्वान लोगों में भी निषेधात्मक भावों की सक्रियता का यह एक प्रमुख कारण बनता है । अन्तस्रावी ग्रंथितंत्र के संतुलन से अनुकम्पी और परानुकम्पी नाड़ीतंत्र का भी संतुलन होता है। संतुलन की यह स्थिति व्यक्ति की आंतरिक समस्याओं का संतोषजनक समाधान करती है । जीवन-विज्ञान इस दिशा में एक अभिनव उपक्रम है। वैज्ञानिकों ने कुछ नई खोजें भी की हैं । उनके अनुसार नाड़ीतंत्र, ग्रंथीतंत्र और जैव रसायन हिंसा और अहिंसा के बीजों को अंकुरित करने में निमित्त बनते हैं। सामान्य धारणा यह है- साम्प्रदायिक कट्टरता मस्तिष्कीय विकार अथवा मस्तिष्कीय रोग है । मस्तिष्क विद्या के अनुसार मस्तिष्क की तीन परते हैं लिम्बिक सिस्टम रेप्टेलियन मस्तिष्क निओ-कार्टेक्स इनका उचित नियंत्रण, प्रशिक्षण और विकास विद्यार्थी की अहिंसक चेतना के जागरण में योगभूत 1 बनता · 208 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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