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________________ जाना चाहिए। जीवन-विज्ञान के द्वारा उस संयम या संकल्प शक्ति को जगाने के प्रयोग कराए जाते हैं। केवल पाठ नहीं पढ़ाया जाता, उसके प्रयोग कराए जाते हैं। उन प्रयोगों से सुप्त शक्तियां जागृत हो जाती हैं। हर विद्यार्थी को यह अनुभव करना चाहिए कि मेरे भीतर शक्ति का अक्षय कोश है। 'मैं कमजोर नहीं हूँ, मैं गरीब नहीं हूँ, मैं दरिद्र नहीं हूँ।' शक्ति जागरण का यह महामंत्र है। प्रकट रूप से शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थी में शक्ति जागरण की पर्याप्त संभावनाओं को भांपा हैं। वे कहते विद्यालय बालक को न केवल श्रुत संपन्न ही बनाये अपितु शील संपन्न भी बनाये। विद्यालयों के लिए एक वाक्य बन जाए-श्रुत संपन्न बनोः शील संपन्न बनों। 'कोरे श्रुत संपन्न नहीं, कोरे विद्वान और ज्ञानी नहीं, साथ में शील संपन्न भी बनों।' इस दिशा में प्रयास और सफलता का नाम है जीवन-विज्ञान। एल. रॉन हबर्ड द्वारा प्रतिपादित 'साइंटोलोलॉजी' साइंस ऑफ लाइफ यानी जीवन का विज्ञान अथवा जीने का विज्ञान नैतिक मूल्यों के साथ व्यावहारिक ज्ञान पर बल देता है और जीवन की विभिन्न परिस्थितियों से जूझने और समाधान के व्यावहारिक समाधान सुझाता है। जीवन-विज्ञान की प्रविधि इससे सर्वथा मौलिक है। इसमें सैद्धांतिक ज्ञान के साथ प्रयोगों के द्वारा अखण्ड व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया बतलाई जाती है। विशेष रूप से इसमें बालक के भाव जगत को भावित कर आवेग और आवेश पर नियंत्रण स्थापित करने की शक्ति पैदा की जाती है। जीवन-विज्ञान से जुड़ने के बाद विद्यार्थी अपने में सकारात्मक बदलाव महसूस करते हैं। यह आत्मविश्वास, समझ, ईमानदारी, नैतिकता, प्रसन्नता और सफलता पाने के उपायों पर बेहतर ढंग से केन्द्रित होने की क्षमता प्रदान करता है। जीवन-विज्ञान का कार्यक्रम एक त्रिकोणात्मक अभियान है-अभिभावक, शिक्षक और विद्यार्थी को भावित करता है। शिक्षण की इस अभिनव प्रविधि के संबंध में आचार्य महाप्रज्ञ ने बतलाया-जीवन-विज्ञान के रूप में हम इस दिशा में जो प्रयत्न कर रहे हैं, उसमें राज्य सरकारें अपनी पूरी रूचि दिखा रही हैं। जीवन-विज्ञान जगत में बहुत व्यापक बन रहा है, लोकप्रिय हो रहा है। आज पूरे कर्नाटक में दो लाख शिक्षकों को जीवन-विज्ञान की ट्रेनिंग दी जा रही है। कर्नाटक सरकार जीवन-विज्ञान के प्रयोगों की सी. डी. बनवाकर उसे अपने राज्य के हर स्कूल को भेज रही है। प्रसंगतः उन्होंने कहा-'आज मैं कह सकता हूं कि जीवन-विज्ञान के प्रयोगों ने परिणाम दिखाया है। इसीलिए आज देश के कई प्रांतो ने अपने स्कूलों में इसे लागू किया है। पूरे आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि आज चालीस-पैंतालीस लाख विद्यार्थी इस प्रयोग से लाभान्वित हो रहे हैं। लाखों शिक्षक अणुव्रत शिक्षक संसद के साथ जुड़कर, उसके सदस्य बनकर जीवन विज्ञान के काम को आगे बढ़ा रहे हैं, उसे व्यापक बनाने में अपना सहयोग दे रहे हैं। एक बात में यहाँ और स्पष्ट कर दूं कि जीवन-विज्ञान और अहिंसा प्रशिक्षण के हमारे अस्सी प्रतिशत कार्यकर्ता अजैन हैं। नक्सली हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों जैसे-बिहार, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ में जीवन-विज्ञान का सघन कार्यक्रम चल रहा है। अहिंसा के कार्यकर्ता इन क्षेत्रों में हिंसक गतिविधियों में संलग्न युवकों से संपर्क कर उन्हें प्रशिक्षण कार्यक्रम के नजदीक ला रहे हैं।'65 अकेले बोकारों की पचास स्कूलों में जीवन-विज्ञान का शिक्षण-प्रशिक्षण इसकी उपयोगिता का सबूत है। भीलवाड़ा, ऋषिकेश में जीवन विज्ञान का प्रभावी शिक्षण चल रहा है। 212 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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