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________________ सृजनात्मक कड़ियाँ बनाम आस्था साहित्य सृजन आचार्य महाप्रज्ञ का साहित्य आज जन-जन के लिए प्रेरणा पाथेय बन रहा है। मूल्य है उस साहित्य सृजन चेतना के सर्जक का। उनका साहित्य विभिन्न भाषाओं में प्रचुर संख्या में उपलब्ध है। जिसमें प्रबुद्ध-अप्रबुद्ध, बाल-युवा, प्रौढ़-वृद्ध सभी को समाहित करने की अद्भुत कला है। विश्व व्यापी समस्याओं का समाधान आचार्य महाप्रज्ञ ने अपने मौलिक चिंतन के द्वारा साहित्य के माध्यम से किया है। प्रश्न है इस प्रेरणा के मूल स्त्रोत का।। ___आचार्य महाप्रज्ञ मौलिक साहित्य के स्रष्टा रहे हैं। उनकी सृजन चेतना को जगाने वाले भी आचार्य तलसी थे। प्रथम प्रसंग था-प्रो. हीरालाल रसिकदास कापडिया अहिंसा के बारे में एक ग्रन्थ का संकलन कर रहे थे। आचार्य भिक्षु के अहिंसा संबंधी विचारों को संपादित ग्रन्थ में देने की भावना से आचार्य तुलसी से एक निबन्ध का निवेदन किया। आचार्य तुलसी उस समय चाड़वास (चुरूराजस्थान) विराज रहे थे। उन्होंने मुनि नथमल (महाप्रज्ञ) को बुलाकर पूछा- क्या तुम हिन्दी में निबंध लिख सकते हो?' (उस काल में राजस्थान के थली क्षेत्र में हिन्दी का प्रचलन ही नहीं था) स्वाभाविक उत्तर था-'लिख सकता हूँ।' गुरुदेव ने आदेश दिया-'अहिंसा के संबंध में आचार्य भिक्षु के विचारों पर एक निबंध लिखो।' हिन्दी में लिखा गया वह प्रथम निबंध 'अहिंसा' शीर्षक से एक लघु पुस्तिका के रूप में प्रकाशित हुआ। साहित्य सृजन का शिल्यान्यास ‘अहिंसा' लेखन के साथ हुआ। नियति का संयोग था कि सर्वप्रथम अहिंसा जैसे विराट् विषय पर कुछ लिखने का मुनि नथमल को सौभाग्य मिला। इसी विषय पर पुनः लेखन की प्रेरणा मिली। आचार्य तुलसी का चातुर्मासिक प्रवास (वि.सं0 2011) मुम्बई में था। परमानन्द कापड़िया ने तेरापंथ की अहिंसा विषयक दृष्टि पर एक समीक्षा लिखी। आलोचना स्तरीय थी। इससे पहले तेरापंथ के अहिंसा विषयक सिद्धांत की इस रूप में आलोचना नहीं निकली थी। गुजराती भाषा में छपे लेख का शीर्षक था-'अहिंसा की अधूरी समझ।' आचार्य तुलसी ने उस लेख को पढ़कर महाप्रज्ञ को निर्देश दिया-‘अब तक हमने आलोचना का प्रत्युत्तर नहीं दिया। पहली बार यह स्तर की आलोचना निकली है, जिसमें गाली-गालौज नहीं किन्तु एक चिन्तन है। अब हमें इसका प्रत्युत्तर देना चाहिए। तुम एक लेख लिखो।' आदेश को आकार देते हुए महाप्रज्ञ ने एक लेख लिखा ‘अहिंसा की सही समझ' 'जैन भारती' पत्रिका में दोनों लेख एक साथ छपे। कापड़िया ने 'प्रबुद्ध जीवन पत्रिका में लिखा-'मेरे लेख में कहीं-कहीं व्यंग्य भी है, कटूक्तियाँ भी हैं, किन्तु मुनि श्री नथमल जी ने जो लेख सृजनात्मक कड़ियाँ बनाम आस्था । 169
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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