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________________ दर्शन समय-समय पर मिलता रहा। वे महाप्रज्ञ की अहंकार मुक्ति की साधना में विशेष रूप से प्रेरणास्रोत बनें। उनके शिक्षाप्रद बोल की अर्थात्मा थी - 'विद्या का और गुरु- कृपा का अहंकार नहीं होना चाहिए । हम मुनि हैं। हम किस बात का अहंकार करें। माँगना बहुत छोटा काम है । हम रोटी के लिए दूसरों के सामने हाथ पसारते हैं, फिर अहंकार किस बात का ? न जाने कितनी बार यह जीव बेर की गुठली बनकर पैरों में रौंदा जा चुका है। फिर अहंकार किस बात है ?"7 इन छोटे-छोटे बोलों ने मुनि नथमल की आभ्यन्तर चेतना को मात्र छूआ ही नहीं अभिमंत्रित भी किया । महाप्रज्ञ ने तहेदिल से स्वीकारा कि मेरी अहंकार- मुक्ति की साधना के प्रेरणास्रोत एक मात्र मंत्री मुनि बनें। इस संदर्भ में मंत्री मुनि की दूरदृष्टि एवं महाप्रज्ञ की निर्मल चेतना में संग्राहक भाव का अनूठा निदर्शन है। मंत्री मुनि के शिक्षामृत वचनों की छाप महाप्रज्ञ जीवन-दर्शन में अमिट बनीं। उस प्रेरणा की बदौलत महाप्रज्ञ उच्च कोटि की विद्वत्ता के शिखर पर भी उतने ही सहज-सरल और प्रणत चेता बने रहे । 168 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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