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________________ में कहा-'आज पंडितजी संस्कृत में कितने अच्छे बोले! हमारे धर्मसंघ में संस्कृत में इस प्रकार बोलने वाला कोई नहीं है। क्या कभी हमारे साधु भी संस्कृत में इस प्रकार धाराप्रवाह बोल सकेंगे?' गुरु के वेदना भरे स्वरों से संतों के मानस में एक दृढ़ संकल्प पैदा हआ। नथमल आदि अनेक मुनियों में संस्कृत भाषा का अभ्यास प्रारंभ हो गया। दो-तीन महीनों के सघन प्रयत्न-पुरुषार्थ के पश्चात् संस्कृत भाषण की दक्षता कसौटी पर स्वयं को कसने के लिए तैयार हो गये। आचार्य तुलसी ने कसौटी रखी-‘एक महीने तक प्रतिदिन निर्धारित विषय पर संस्कृत भाषा में संभाषण करना। जिस मुनि के एक भी अशुद्धि नहीं आयेगी, उसे पुरस्कृत किया जाएगा। अभिप्रेरणा से सज्जित एक प्रतियोगिता में लगभग बीस साधुओं में से सर्वथा टि-मुक्त बोलने वाले एकमात्र मुनि थे-'नथमल' । संकल्प की सफलता पर महाप्रज्ञ वो यथेष्ट पुरस्कार मिला और गुरु तुलसी को अपने शिष्य की प्रतिभा पर आत्मतोष। महाप्रज्ञ अपने संकल्प, पुरुषार्थ और सतत अभ्यास से संस्कृत भाषा के अधिकृत विद्वान बन गयें। साथ ही प्राकृत भाषा के वेत्ता भी बनें। इसकी पुष्टि तब हुई जब जर्मन विद्वान डॉ. नॉर्मन ब्राऊन की हार्दिक इच्छा पर आचार्य तुलसी के निर्देश से महाप्रज्ञ ने स्याद्वाद्व विषय पर बीस मिनट तक प्राकृत भाषा में धारा प्रवाह प्रवचन दिया। आचार्य तुलसी सहित उपस्थित सारी परिषद् भाव विभोर हो उठी। विशेष रूप से पेनस्लेविया यूनिवर्सिटी के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. नॉर्मन ब्राऊन ने आचार्य प्रवर के प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए कहा-मेरी आज भारत यात्रा सफल हो गयी। मैं कृतार्थ हो गया अब मैं चाहे अभी मरूँ या बाद में मेरी अंतिम अभिलाषा पूरी हो गयी। फौलादी संकल्प की चेतना से अभिभूत आचार्य महाप्रज्ञ ने संस्कृत-प्राकृत जैसी भाषाओं पर न केवल प्रभुत्व स्थापित किया अपितु इनकी समृद्धि हेतु साहित्य-कोश, व्याकरण आदि का निर्माण सुगम शैली में किया। मंत्री मुनि की अनमोल शिक्षा महाप्रज्ञ के आध्यात्मिक जीवन को सझाने-सँवारने में मंत्रीमुनि मगनलालजी की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। वे अपनी विलक्षण सूझबूझ की बदौलत तेरापंथ धर्मसंघ में मंत्री पद से सुशोभित थे। उन्होंने अपने समय का नियोजन धर्म संघ के बाल मुनियों के संस्कार निर्माण में किया। उस कड़ी से जुड़ने का सौभाग्य मुनि नथमल को मिला। मुनि नथमल की विकास गति को वे सैदव प्रेरित करते रहे, संस्कार बीजों का वपन करते रहे। उस समय बोया गया संस्कार बीज, प्रेरणा कौशल महाप्रज्ञ के जीवन-दर्शन में ताजिंदगी अंकित रहा। महाप्रज्ञ ने इस तथ्य को प्रस्तुति दी-'इतना प्रबुद्ध, इतना चिंतक और इतना गंभीर व्यक्ति मैंने अभी तक दूसरा नहीं देखा। मेरे साथ वे जो कुछ बात करते, उससे मुझे ऐसा लगता, जैसे वे सचमुच कोई बीज बो रहें हैं। उनके शिक्षापदों ने मुझे बहुत अवकाश दिया संभलने का। प्रेरणास्रोत की जीवंत विशेषताएँ महाप्रज्ञ के जीवन की अनमोल धरोहर बन गई। उनका बोया हआ संस्कार बीज बरगद रूप में बदल गया। जहाँ तक शिक्षा पदों से संभलने का सवाल है-विकास के बाधक तत्त्वों से बचाव करना। साधक की साधना में अहंकार-ममकार विघ्न पैदा करने वाले मुख्य घटक हैं। ज्ञान की अपूर्णता और साधना की अपरिपक्व स्थिति में ये मुमुक्षु पर हावी हो सकते हैं। पर इस संदर्भ में मुनि नथमल का सौभाग्य था जिन्हें मंत्री मुनि जैसे मजीठे साधकों का उचित मार्ग परिवर्तन एवं नव निर्माण | 167
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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