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________________ से-कठिन समस्याओं को हल करने की आवश्यक शक्ति दे देगा। एकदा जिज्ञासु का प्रश्न था-जहाज से नेटाल की धरती पर यदि भारतीयों को न उतरने दिया जायेगा तो आप क्या करेंगे? उत्तर था-'मुझे आशा है कि उन्हें माफ कर देने और उन पर मुकदमा न चलाने की हिम्मत और बुद्धि ईश्वर मुझे देगा। मुझे उन पर जरा भी गुस्सा नहीं है। उनकी नासमझी और तंगदिली पर अफसोस ही है।' ईश्वरीय आस्था गांधी की प्रत्येक समस्या का सकारात्मक हल थी। वे अपनी शक्ति का स्रोत सदैव ईश्वर को मानते थे। स्वयं के बारे में उनका अभिमत था जो ईश्वर मुझे देता है इसके अलावा मेरे पास कोई ताकत नहीं है। सिर्फ नैतिक प्रभाव के अलावा मेरी देशवासियों पर भी कोई सत्ता नहीं इस समय संसार पर जिस भीषण हिंसा का साम्राज्य है उसकी जगह अहिंसा स्थापित करने के लिए ईश्वर मुझे शुद्ध अस्त्र समझता होगा तो वह मुझे बल भी देगा और रास्ता भी दिखायेगा। मेरा बड़े से बड़ा हथियार तो मूल प्रार्थना है। गांधी दृष्टि में शांति स्थापना का काम ईश्वर के समर्थ हाथों में है। उसके हुक्म के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता। उसका हुक्म उसके कानून की शकल में ही जारी होता है। वह कानून सदा वैसा ही रहता है कभी बदलता नहीं। उसमें और उसके कानून में कोई भेद भी नहीं है। हमें उसे और उसके कानून की जो हल्की सी झलक दिखायी देती है वह मेरे अन्तर को आनन्द, आशा और भविष्य में श्रद्धा से भर देने के लिए काफी है।'' उनका श्रद्धालु चित्त आजादी की राहों पर आने वाली बाधाओं का पार भी ईश्वरीय शक्ति में खोजता एवं समाधान भी पाता। यह सोच थी कि ईश्वर की कृपा से मैं कोई आधी सदी से जो काम कर रहा हूँ अगर उसके लिए मेरी और जरूरत न रही, तो शायद वह मुझे उठा लेगा। लेकिन मेरा ख्याल है कि मेरे करने को अभी बहुत काम है। ...अहिंसात्मक साधनों से भारत अपने लक्ष्य को पहुँच जायेगा फिर उसके लिए चाहे डांडी-कूच से भी ज्यादा उग्र लड़ाई लड़नी पड़े या उसके बगैर ही ऐसा हो जाये। मैं ईश्वर से उस प्रकाश की याचना कर रहा हूँ जो अंधकार का नाश कर देगा। ईश्वर संबंधी गांधी के विचारों से यह प्रकट होता है कि उनकी श्रद्धा इष्ट के प्रति घनीभूत थी। हिन्दू संस्कृति का प्रभाव उनके हृदय में न केवल अंकित ही था अपितु पल्लवित एवं पुष्पित था। अतः जो शक्ति, जो प्रेरणा उन्होंने ईश्वरीय आस्था से पाई अन्यत्र दुर्लभ मिलेगी। आस्था कर्म का आधार बनीं यही गांधी की श्रद्धा का फलित है। मनुष्य का ईश्वर के प्रति कर्तव्य का स्थान सबसे ऊँचा है। इस श्रद्धा के सहारे वे कार्य सिद्धि की कामना करते। उदाहरण स्वरूप 'ईश्वर हमारे भीतर और बाहर की सारी अपवित्रता दूर करे। ईश्वर करे, भारत को ऐसी शक्ति प्राप्त हो कि वह अगले 30 सितम्बर तक विदेशी वस्त्रों के पूर्ण बहिष्कार को सफल बना सके ओर इस प्रकार अपने पवित्र निश्चय को पूरा कर सके।'20 जाहिर है एक ओर बापू सफलता का सुयोग ईश्वर में खोजते तो दूसरी ओर समय-समय पर ईश्वरीय कृपा की अनुभूति करते। फीनिक्स, टॉलस्टॉय फार्म और साबरमती-आश्रम तीनों जगहों में हिंसक जीवों को न मारने के नियम का यथाशक्ति पालन किया गया। तीनों जगहों में निर्जन जमीनें बसानी पड़ी थीं। तीनों स्थानों में सर्पादि का उपद्रव काफी था। तिस पर भी आज तक एक भी जान खोनी नहीं पड़ी। इसमें मेरे समान श्रद्धालु को तो ईश्वर के हाथ का, उसकी कृपा का ही दर्शन होता है।.. ..सर्पादि को न मारने पर भी आश्रम-समाज के पच्चीस वर्ष तक बचे रहने को संयोग मानने के बदले 136/ अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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