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47. 108 उपनिषद् ब्रह्म विद्या खण्ड, 96. जाबालदर्शनोपनिषद्, 1.8 48. नारदपरिव्राजकोपनिषद्, 4.10.-'अहिंसा सत्यमस्ते......।' 49. 108 उपनिषद्, जाबालदर्शनोपनिषद्, 1.15-'स्वात्मवत्सर्वभूतेषु कायेन मनसा गिरा।
अनुज्ञा या दया सैव प्रोक्ता वेदान्त वेदिभिः।।' 50. मुण्डकोपनिषद् 2.8- 'भिद्दते हृदय ग्रन्थिश्छिद्यन्ते सर्व संशयाः ।
___ क्षीयन्ते चास्य कर्माणि तस्मिन्दृष्टे परावरे।।' 51. प्रो. सत्यव्रत सिद्धांतालंकार, एकादसोपनिषद्. 592 52. ईशावास्योपनिषद्, 1- 'ॐ ईशावास्यमिदं सर्व यत्किंच जगत्यांजगत।
तेन त्यक्तेन भुजीथा मा गृधः कस्य स्विद्धनम्।।" 53. कठोपनिषद्, 1- 'ऊँ सहनाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु। मा विद्विषावहे। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्ति।' 54. श्री गोस्वामी तुलसीदासजी, रामचरित् मानस 92.93,377
'धरम न दूसर सत्य समाना, आगम निगम पुराण बखाना।
मैं सोइ धरम सुलभ करिपावा, तजेतिहूं पुर अपजस छावा।।' 55. रामचरित मानस, 133.1.405 'करि केहर कपि कोल करंगा, विगत बैर बिचरहिं इक संगा।' 56-58. रामचरित मानस, 226, 3-4, 467,242, 477, 268.1-2.495 59-60. रामचरित् मानस, उत्तरकाण्ड, 16.2.857, 41-45, 870-72 61. जयदयाल गोयन्दका, संक्षिप्त महाभारत (प्रथम खंड), अनुशासन पर्व 23. 115, 28-29-116
'अहिंसा परमो धर्मः, अहिंसा परमो तपः। अहिंसा परमं सत्यं यतो धर्म प्रवर्तते।।' 'अहिंसा परमो धर्मः अहिंसा परमो दमः। अहिंसा परमं दानमहिंसा परंम तपः।'
'अहिंसा परमो यज्ञः अहिंसा परमो फलम्। अहिंसा परमं मित्र महिसा परमं सुखम्।।' 62. संक्षिप्त महाभारत-1. अनुशासन पर्व 3-176- 'कर्मणा न नरः कुर्वन् हिंसा पार्थिव सत्तम्।
वाचा च मनसा चैव ततो दुःखात् प्रमुच्यते।।
पूर्व तु मनसा त्यक्त्वात्यजेद वाचाथ कर्मणा।' 63. संक्षिप्त महाभारत-1. अनुशासन पर्व 145 (मानवता की धुरी. 38)
'देवतातिथि-सुश्रूषा सततं धर्मशीलता। वेदाध्ययन-यज्ञाश्च तपो दानं दमस्तथा।।
आचार्य-गुरू-सुश्रुषा-तीर्थाभि गमनं तथा। अहिंसाया वरारोहे कलां ना र्हन्ति षोऽशीम्।।' 64. जयदयाल गोयन्दका संक्षिप्त महाभारत (खण्ड द्वितीय) शान्ति पर्व 20-272, 30-262, मानवता की धुरी-39
'अहिंसा सकला धर्मो हिंसाधर्मस्तथाहितः। न भूतानामहिंसाया ज्यायान् धर्मोऽस्ति कश्चन।
यस्मान्नोद्विजते भूतं जात किंचित् कथंचन।।' 65. संक्षिप्त महाभारत-1, 532-533 66. संक्षिप्त महाभारत-2, 1317 67. श्रीमद्भगवद्गीता, 10-5
'अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयशः।
भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधा।' 68. श्री मद्भगवद्गीता, 13-30-'यदाभूतपृथग्भावमेकस्थ मनुपश्यति।
तत एव च विस्तारं ब्रह्म संपद्यते तदा।।' 69. श्री मद्भगवद्गीता, 16.2- 'अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्
दयाभूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं हीरचापलम।।' 70. श्री मद्भगवद्गीता, 12-13- 'अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च।
निर्ममो निरहंकारः समदुःखसुखीः क्षमी।।'
आचार्य महाप्रज्ञ का अहिंसा में योगदान | 119