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________________ से अहिंसा विकास का दिशा दर्शन प्राप्त किया । समग्र रूपेण अहिंसा यात्रा का सूरत प्रवास उपलब्धियों भरा रहा। जहाँ से अहिंसा की आवाज विश्व व्यापी पसरी । अहिंसा के विकासात्मक स्वरूप विमर्श से यह स्पष्ट होता है कि अहिंसा की अमिट लौ को देश-काल और परिस्थितियों की हवाएं अस्तित्व शून्य न बना सकी । बनिस्पत इसकी ज्योति समयसमय पर प्रभास्वर बनकर जन-जीवन को आलोकित करती रही है ऐसा ऐतिहासिक संदर्भ से उजागर है । अहिंसा की जीवंत शक्ति महापुरुषों की प्राणधारा से जुड़कर सदैव वांछित प्रदात्री सिद्ध हुई । वर्तमान के संदर्भ में विशेषरूप से महात्मा गांधी की प्रयोग धर्मा अहिंसा ने नये इतिहास का सृजन किया और दुनिया के समक्ष मिशाल कायम की । उसे पुनः प्रज्ज्वलित करने में आचार्य महाप्रज्ञ का योगदान महत्त्वपूर्ण है। विश्व के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की पृष्ठभूमि में उन्होंने अहिंसा को अनिवार्य बतलाया। इस बात को बलपूर्वक प्रस्तुत किया कि वैयक्तिक जीवन को आनन्दमय बनाने के लिए अहिंसा को जीवन की प्रयोगभूमि में उतारना होगा। इसके प्रायोगिक संचरण हेतु अनेक महत्त्वपूर्ण उपक्रम सुझाये हैं। अहिंसा के विकासक्रम का मंथन जिज्ञासु के लिए नये तथ्यों के समाकलन में योगभूत बनेगा और एतद् विषयक खोज को नया आयाम देगा । संदर्भ 1. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति वक्षस्कार 2, 29 - 'मुंडे भविता अगाराओ अणगारियं पव्वइए णत्थिणं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधे ।' युवाचार्य महाप्रज्ञ, अहिंसा तत्त्व दर्शन - 7 2. युवाचार्य महाप्रज्ञ, अहिंसा तत्त्वदर्शन - 7-8 3. पण्डित रामचन्द्र पाठक, आदर्श हिन्दी शब्दकोश. 49 4. क्षुलक जैनेन्द्रवर्णी, जेनेन्द्र सिद्धांतकोश 4. 53 5. उमास्वाति, तत्त्वार्थसूत्र - 7.13 - “प्रमत्तयोगात्प्राण व्यपरोपणं हिंसा ।” 6. सं. युवाचार्य महाप्रज्ञ, सूयगडो 1.10.21, टिप्पण - 71. 450 7. भगवती आराधनामूल, 803 8. सं. डॉ. रामचन्द्र द्विवेदी; डॉ. प्रेम सुमन जैन जैन विद्या का सांस्कृतिक अवदान - 119 9. सं. युवाचार्य श्री मधुकर मुनि, प्रश्न व्याकरण - 2.1.109- 'एसा भगवई अहिंसा जा सा अपरिमिय-णाणदंसणधरेहिं सील-गुण- विणय-तव-संयम णायगेहिं तित्थयरेहिं सव्वजग जीववच्छलेहि...... अणुपालिया भगवई ।' 10. सं. मुनि नथमल, आयारो. 4.1.1 11. आयारो, 4.1.9-‘दिट्ठ सुयं मयं विण्णायं, जमेयं परिकहिज्जइ ।' 12. आयारो, 4.1.2-‘एस धम्मे सुद्धे णिइए सासए समिच्च लोयं खेयण्णेहिं पवेइए।' 13. भाष्यकार : आचार्य महाप्रज्ञ, आचारांगभाष्यम्. 208 14. उत्तरज्झयणाणि 6.6- 'अज्झत्थं सव्वओ सव्वं, दिस्स पाणे पियायए । न हणे पाणिणो पाणे, भयवेराओ उवरए । ।' 15. आयारो, 1.2.3.63-64- 'सव्वे पाणा पियाउया, सुयसाया दुक्खपडिकूला, अप्पियवहा, पियजीविणो.... । सव्वेसिं जीविय......... ।' 16. आयारो, 1.5.90 तं णो करिस्सामि समुट्ठाए ।' 17. सं. युवाचार्य महाप्रज्ञ, समवाओ, 6.2-'छ जीव निकाया पण्णत्ता,....... ।' 18. आयारो, 8.1.18- 'तं परिण्णाय मेहावी णेव सयं एतेहिं काएहिं दंडं समारंभेज्जा, वहिं एतेहिं काएहिं दंडं समारंभावेज्जा.......... ।” 19. आचारांगभाष्यम्, 365 20. पं. कैलाशचन्द्र जी शास्त्री - मुनि श्री नथमलजी, समण सुत्तं 156. 50 आचार्य महाप्रज्ञ का अहिंसा में योगदान / 117
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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