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हिन्दू और मुसलमान भाई आपस में लड़ते रहेंगे तो वे सदा गरीब ही होंगे। साथ ही देश को भी आर्थिक रूप से नुकसान होगा। विकास के लिए शांति आवश्यक है। दोनों कौमों के बीच शांति स्थापित करने हेतु प्रत्येक सम्प्रदाय के लोग एक-दूसरे सम्प्रदाय के लोगों के उत्सवों में विघ्न न डालें। शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के माहौल में ही धर्म का उदय होता है। लड़ाई-झगड़े में धर्म का विकास नहीं होता । शांतिपूर्ण जीवन का सूत्र है मानव का मानव के प्रति प्रेम | 228 इस आत्मीय निवेदन को सभी ने स्वीकार किया ।
अहिंसा-शांति के मिशन को साकार करने हेतु आचार्य महाप्रज्ञ ने अहमदाबाद के दंगाग्रस्त क्षेत्रों का भ्रमण कर सांप्रदायिक सौहार्द और सद्भाव को प्राणवान बनाया। उन्हीं प्रयत्नों की बदौलत जगन्नाथ यात्रा और मोहर्रम व ईद के पर्व पूर्ण शांति, सौहार्द और सहयोग के माहौल में मनाये गये। जो अहिंसा यात्रा के अहमदाबाद प्रवास स्वर्णिम आलेख बन चुके हैं ।
अहिंसा यात्रा के दौरान किसी भी प्रेरक अवसर पर प्रदत्त आचार्य महाप्रज्ञ का मार्मिक उद्बोधन श्रोता के अन्तर्मन को हिलाकर रख देता। इसका उदाहरण है- प्रेक्षा विश्व भारती (कोबा) में समायोजित 15 अगस्त का स्वतंत्रता दिवस | आचार्य महाप्रज्ञ ने अपने प्रेरक उद्बोधन में कहा - 'पंद्रह अगस्त का दिन स्वतंत्रता प्राप्ति का दिन है । हर्ष और उल्लास का दिन है । इस दिन को हमें यदि अधिक मूल्यवान बनाना है तो उसका उपाय है- आत्मनिरीक्षण । व्यक्ति दूसरे को ज्यादा देखता है, अपने आप को बहुत कम देखता है। प्रश्न होगा कि पचपन वर्षों में हमने क्या किया ? जहाँ थे, वहीं है, या आगे बढ़े हैं? कुछ अर्थों में कहा जा सकता है कि हम जहाँ थे वहीं हैं । बल्कि और पीछे हटे हैं। गरीबी हमारे राष्ट्र की बड़ी समस्या है। गरीबी का ग्राफ ऊपर उठा है। आज समस्या के संदर्भ में चिन्तन तो होता है, पर जो दीर्घकालीन प्रयास होना चाहिए, वह नहीं हो पाता। किसी भी समस्या को एकाग्रता, संकल्पशक्ति और नीति मत्ता के आधार पर सुलझाया जा सकता है तथा अहिंसक चेतना का विकास किया जा सकता है। 229 इस मंतव्य के आलोक में अनुशास्ता के प्रेरणाप्रबोध को, राष्ट्रव्यापी समस्या-समाधान स्वरूप को परखा जा सकता है ।
मानवता के मसीहा आचार्य महाप्रज्ञ ने अहिंसा - यात्रा के माध्यम से साम्प्रदायिक सौहार्द की जो अलख जगाई उसकी आवाज विश्व व्यापी बनी। इस उपक्रम की प्राणवान उपलब्धियों का आकलन सुधी पाठक एक घटना प्रसंग से स्वयं कर सकते हैं । अनुशास्ता के शब्दों में- 'अभी अहमदाबाद में हमने देखा, वहाँ दंगा हुआ तो उसके परिणाम गरीब लोगों को ही भोगने पड़े। अहमदाबाद में कोलकाता से हवाई जहाज से एक भाई दर्शनार्थ आये। जब वे हवाई अड्डे से टैक्सी में बैठकर कोबा आने लगे तो रास्ते में टैक्सी ड्राइवर ने जो मुसलमान था, पूछा- आप कहाँ जायेंगे? भाई ने बताया कि हम कोबा में हमारे गुरूजी के दर्शन करने के लिए जा रहे हैं । ड्राइवर भाव विह्वल होकर बोला - कोबा वाले महाराज ने तो हमें बचा दिया। वो नहीं आते और शांति नहीं होती तो हम तो घर पर बैठे-बैठे ही भूखे मर जाते। बड़े लोगों ने तो अशांति फैला दी। हमें ही उसका परिणाम भोगना पड़ा ।'
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प्रेक्षा विश्व भारती- कोबा में 28 अगस्त को कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी ने अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य महाप्रज्ञ के दर्शन कर प्रसन्नता व्यक्त की - 'आधुनिक काल में अहिंसा के सबसे बड़े पुजारी महात्मा गांधी की जन्मभूमि में शामिल होने का मौका मिला।' उन्होनें अपने संभाषण में कहा-'. '... समाज में अहिंसा के मूल्यों की स्थापना, सांप्रदायिक सद्भावना राष्ट्रीय एकता और
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