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________________ १५) पाँच इन्द्रियों का संयम - श्रोतेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय का संयम (१६ से १८) तीन शुभ योग - मन, वचन और काय की शुभ प्रवृत्ति, (१९) भाण्ड, उपकरण आदि यतना से उठाना व रखना, (२०) सुचीकुशाग्र अर्थात् छोटी से छोटी वस्तु को यतना से लेना और रखना संवर है। संवर के ५७ भेद समिई गुत्ती परीसह जइधम्मो भावणा चरिताणि। पण-ति-दुवीस-दस-बार पंच भेएहिं सगवन्ना॥ अर्थ – पांच समिति, तीन गुप्ति, बाईस परीषह, दश यतिधर्म, बारह भावना और पाँच चारित्र ये संवर के सत्तावन भेद हैं। पाँच समिति साधना का क्रियात्मक रूप है- समिति-गप्ति का पालन करना। भगवान ने भगवती सूत्र शतक २५ उद्देशक ६ एवं ७ में फरमाया कि साधक आठ प्रवचन माता (पांच समिति-तीन गुप्ति) का जघन्य ज्ञान का आराधक साधक भी केवलज्ञानकेवलदर्शन प्राप्त कर लेता है। गृहत्यागी साधक को चलने, फिरने, उठने, बैठने, खड़े रहने, खाने, पीने, बोलने आदि की प्रवृत्ति करना होता है। अतः ऐसी प्रवृत्ति साधक इस प्रकार करनी चाहिए कि जिससे पाप कर्म का बंध नहीं हो अर्थात् यतनापूर्वक कल्याणकारी प्रवृत्ति करना समिति है। कहा भी है: जयं, जयं चिट्ठ, जयमासे जयं सए। जयं भुंजतो भासंतो पावकम्मं न बंधइ॥७॥ - दशवैकालिक अ.४ अर्थात् - साधक यतनापूर्वक चले, यतनापूर्वक खड़े रहे, यतनापूर्वक बैठे, यतनापूर्वक सोये, यतनापूर्वक भोजन करता हुआ, यतनापूर्वक बोलता हुआ साधक पापकर्म का बंध नहीं करता है अर्थात् साधक की सह प्रवृत्तियाँ समिति कही गई हैं, ये पांच हैं, यथाः पाँच समितियाँ- साधक की सद् प्रवृत्तियाँ समिति कही जाती हैं, ये पाँच हैं, यथा - आस्रव-संवर तत्त्व [67]
SR No.022864
Book TitleJain Tattva Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2015
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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