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आस्रव के ४२ भेद
आस्रव तत्त्व के बयालीस भेद इस प्रकार हैं, यथाइंदिय कसाय अव्वय जोगा, पंच चउ चउ पंच तिन्नि कमा।
किरियाओ पणवीसं, इमाउ ताओ अणुक्कमसो।। अर्थ- पाँच इन्द्रिय, चार कषाय, पाँच अव्रत, तीन योग और पच्चीस क्रियाएँ ये आस्रव के बयालीस भेद हैं।
इन्द्रियाँ पाँच हैं- (१) स्पर्शन, (२) रसना, (३) घ्राण (४) चक्षु और (५) श्रोत्र । यहाँ इन्द्रियों से अभिप्राय इन्द्रियों के विषयों के भोग से है। इन्द्रियविषयों में राग, द्वेष रूप प्रवृत्ति ही आस्रव है। कषाय चार है- (१) क्रोध (२) मान, (३) माया और (४) लोभ। इनके कारण से होने वाला आस्रव ४ प्रकार का है।
अव्रत पाँच हैं- (१) हिंसा, (२) झूठ, (३) चोरी, (४) मैथुन और (५) परिग्रह। इन पाप प्रवृत्तियों से होने वाला आस्रव ५ प्रकार का है।
योग तीन है- (१) मन योग, (२) वचन योग और (३) काय योग। इन तीनों की अशुभ प्रवृत्ति अशुभ योग से होने वाला आस्रव ३ प्रकार का है।
क्रियाएं पच्चीस हैं - इनके नाम एवं संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है
(१) कायिकी क्रिया, (२) आधिकरणिकी क्रिया, (३) प्रादोषिकी क्रिया, (४) पारितापनिकी क्रिया, (५) प्राणातिपातिकी क्रिया, (६) आरम्भिकी क्रिया, (७) पारिग्रहिकी क्रिया, (८) माया प्रत्ययिकी क्रिया, (९) मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी क्रिया, (१०) अप्रत्याख्यानिकी क्रिया, (११) दृष्टिकी क्रिया, (१२) स्पृष्टिकी क्रिया, (१३) प्रात्ययिकी क्रिया, (१४) समन्तनुपातिकी क्रिया, (१५) नैशस्त्रिकी क्रिया, (१६) स्वहस्तकी क्रिया, (१७) वैदारणिकी क्रिया, (१८) आज्ञाव्यापादिकी क्रिया, (१९) अनाभोग क्रिया, (२०) अनवकांक्षा प्रत्ययिकी क्रिया, (२१) प्रायोगिकी क्रिया, (२२) समादानिकी क्रिया, (२३) प्रेमिकी क्रिया, (२४) द्वेषिकी क्रिया, (२५) ईर्यापथिकी क्रिया। संवर के बीस भेद
(१ से ५) पाँच संवर - सम्यक्त्व, विरति, अप्रमाद, अकषाय और शुभ योग (६ से १०) पाँच विरति- अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह (११ से
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जैनतत्त्व सार