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________________ शुभ-अशुभ आम्रवों के लक्षण 'तत्र कायिको हिंसाऽनृत-स्तेयाब्रह्मचर्यादिषु प्रवृत्ति-निवृत्तिसंज्ञः। वाचिकः परुषाक्रोशपिशुनपरोपघातादिषु वचस्सु प्रवृत्ति-निवृत्तिसंज्ञः।मानसो मिथ्याश्रुत्यभिघातेासूयादिषु मनसः प्रवृत्ति-निवृत्तिसंज्ञः।' तत्त्वार्थसूत्र, ६-७ राजवार्तिक टीका अर्थात् हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील आदि में प्रवृत्ति अशुभ कायास्रव है तथा निवृत्ति शुभ कायास्रव है। कठोर शब्द, गाली, चुगली आदि पर को आघात पहुँचाने वाले वचनों की प्रवृत्ति वचन का अशुभास्रव है और इनसे निवृत्ति वचन का शुभास्रव है। मिथ्याश्रुति, ईर्ष्या, मात्सर्य, षड्यन्त्र आदि मन की दुष्प्रवृत्ति मन का अशुभास्रव है और इन दुष्प्रवृत्त्यिों से निवृत्ति मन का शुभास्रव है। आशय यह है कि अशुभ-योग (पाप प्रवृत्तियाँ) अशुभास्रव (पापासव) का हेतु है और शुभ योग (पाप प्रवृत्तियों की निवृत्ति-निरोध) शुभास्रव (पुण्यास्रव) का हेतु है और पापानव का निरोध ही संवर भी है। अतः जहाँ शुभास्रव - शुभ योग है वहाँ संवर है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि प्राणातिपात, मृषावाद आदि अठारह पाप-प्रवृत्तियाँ पापासव की हेतु और इनकी निवृत्ति-निरोध (संवरण) पुण्यासव का हेतु है। व्रत या संयम धारण करना संवर का समन्वित या क्रियात्मक रूप है। संयम में सम्यक्त्व, विषय-कषाय से विरक्ति, शुभता, सजगता आदि समन्वित हैं, अतः संयम संवर का द्योतक है। प्रकारान्तर से आस्रव और संवर के बीस-बीस भेद भी प्रसिद्ध हैं, वे इस प्रकार हैंआस्रव के बीस भेद (१ से ५) पाँच आस्रव- मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग, (६ से १०) पाँच अविरति- हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्म और परिग्रह, (११ से १५) पाँच इन्द्रियों का असंयम - श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय, इनका संयम न रखना, (१६ से १८) तीन योग- मन, वचन, काय योग की अशुभ प्रवृत्ति, १९ - भाण्ड, उपकरण आदि अयतना से उठाना – रखना, और २० - सूचीकुशाग्र (सुई - दूब की नोक जितनी लघु) वस्तु मात्र का अयतना से लेना और रखना। आसव-संवर तत्त्व [65]
SR No.022864
Book TitleJain Tattva Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2015
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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