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________________ अर्थ- (1) बंध (2) उत्कर्षण (3) संक्रमण (4) अपकर्षण (5) उदीरणा (6) सत्त्व (7) उदय (8) उपशम (9) निधत्ति और (10) निकाचना- ये दशकरण प्रत्येक कर्म प्रकृति के होते हैं। आगे की तीन गाथाओं में इनकी व्याख्या करते हुए कहा है कि कमों का आत्मा से सम्बन्ध होना बंध है। कमों की स्थिति तथा अनुभाग का बढ़ना उत्कर्षण करण है। बंध रूप कर्म प्रकृति का दूसरी कर्म प्रकृति रूप परिणमन होना संक्रमण करण है। स्थिति तथा अनुभाग में कमी होना अपकर्षण करण है। उदय से अन्यत्र स्थित कर्म को उदयावली में लाना उदीरणा है। कर्म का अस्तित्व (सत्ता) में रहना सत्त्व है। कर्म का फल देना उदय है। जो कर्म उदयावली में प्राप्त न किया जाय अर्थात् उदीरणा को प्राप्त न हो तो वह उपशम करण है। जो कर्म उदीरणा और संक्रमण को प्राप्त न हो उसे निधत्ति करण कहते हैं और जिस कर्म की उदीरणा, संक्रमण, उत्कर्षण और अपकर्षण ये चारों ही अवस्थाएँ नहीं हों उसे निकाचित करण कहते हैं। आगे प्रकृतियों तथा गुणस्थानों में करणों की संख्या बताते हुए कहा है संकमणाकरणूणा णवकरणा होंति सव्वआऊणं। सेसाणं दसकरणा अपुव्वकरणोत्ति दस करणा॥ -गोम्मटसार कर्मकाण्ड, 441 सभी चारों आयु कर्मों में संक्रमण करण के बिना शेष नौ करण होते हैं। और शेष सब कर्म प्रकृतियों के आठवें अपूर्वकरण गुणस्थानपर्यन्त दस ही करण होते हैं। आगे कहा गया है कि उपशान्त कषाय पर्यन्त देवायु का भी अपकर्षण होता है अर्थात् देवायु भी निकाचित नहीं है। ___ कर्मसिद्धान्त में यह नियम है कि भावों की विशुद्धि से तीन शुभ आयु को छोड़कर शेष सत्ता में स्थित समस्त पाप-पुण्य कर्म प्रकृतियों की स्थिति का अपकर्षण होता है, पाप प्रकृतियों के अनुभाग का भी अपकर्षण होता है तथा पुण्य प्रकृतियों के अनुभाग का उत्कर्षण होता है। इसके विपरीत सत्ता में स्थित सातों कर्मों के समस्त पाप-पुण्य प्रकृतियों के स्थिति बंध का संकेश भावों से उत्कर्षण होता है तथा पाप प्रकृतियों के अनुभाग का भी उत्कर्षण होता है और पुण्य प्रकृतियों के अनुभाग का अपकर्षण होता है। इसी प्रकार आयु कर्म की चार प्रकृतियों के बिना शेष कर्म प्रकृतियां जो अभी उदय में नहीं आ रही हैं, परन्तु सत्ता में स्थित हैं, बंध तत्त्व [163]
SR No.022864
Book TitleJain Tattva Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2015
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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