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जिस प्रकार प्रयाग में गंगा, यमुना, और सरस्वती का संगम होकर त्रिवेणी बनती है जो अपने गन्तव्य स्थल सागर को पहुँच कर विलीन हो जाती है। इसी प्रकार संवरनिर्जरा रूप गंगा-यमुना तथा पुण्य रूप सरस्वती के संगम से साधना एवं चारित्र की त्रिवेणी बनती है जो अपने गन्तव्य स्थल मुक्ति को पहुँच कर विलीन हो जाती है। जैसे त्रिवेणी-संगम में गंगा और यमुना की धाराएँ तो प्रत्यक्ष दिखाई देती हैं, परन्तु सरस्वती की धारा नहीं दिखाई देती है, उसके लिए कहा जाता है कि वह अदृश्य रूप में इन दोनों ही धाराओं में विद्यमान रहती है। इसी प्रकार संवर-निर्जरा रूप गंगा-यमुना, साधना की ये दो धाराएँ स्पष्ट प्रकट हैं और पुण्य की धारा संवर-निर्जरा रूप इन दोनों धाराओं के तल में अव्यक्त रूप से अनुस्यूत रहती है। जिस प्रकार त्रिवेणी में निमग्न होने से तत्काल शारीरिक पवित्रता और शीतलता की उपलब्धि होती है । इसी प्रकार साधना की त्रिवेणी में निमग्न होने से तत्काल मानसिक और आत्मिक पवित्रता व शांति की उपलब्धि होती हैं परन्तु त्रिवेणी इनका भोग न करती हुई सतत प्रवाहमान रहती है । इसी प्रकार साधनात्रिवेणी के योग से भौतिक एवं आध्यात्मिक ऋद्धियाँ, सिद्धियाँ व निधियाँ प्राप्त होती हैं, परन्तु साधक की साधना अजस्र प्रवाहमान रहती है, वह इनका भोग या उपभोग नहीं करता । संवर, निर्जरा तथा पुण्य रूप साधना-त्रिवेणी की अथवा कहें तो चारित्र की आराधना कर मुक्ति पाने में ही मानव जीवन की सार्थकता है। अतः मानव मात्र का कर्त्तव्य है कि वह चारित्र रूप साधना - त्रिवेणी की आराधना कर अपने जीवन को सफल बनावे, मोक्ष प्राप्त करे ।
शुभयोगः संवर
तत्त्वार्थसूत्र अध्य. ६ सूत्र ३ में 'शुभः पुण्यस्य' कहा है, जिसका तात्पर्य है कि शुभ योग से पुण्य का आस्रव होता है । जब शुभयोग आस्रव का हेतु है, तो इसे संवर क्यों कहा जाए ? यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है । उत्तर में कहना है कि जैनागम में आस्रव-संवर तत्त्वों का विवेचन मोक्ष - प्राप्ति की साधना की दृष्टि से किया गया है। मोक्ष-प्राप्ति में पाप ही बाधक है, पुण्य नहीं । अतः आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध, मोक्ष आदि तत्त्वों का विवेचन पाप को लक्ष्य में रखकर किया गया है। कारण कि प्राणी पाप से, कषाय से ही कर्मों का बंध करता है, संसार को बढ़ाता है एवं संसार में परिभ्रमण करता है । अतः पाप ही हेय व त्याज्य है, पाप के क्षय से ही वीतरागता एवं मुक्ति की उपलब्धि संभव है।
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जैतत्त्व सा