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________________ बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का प्राचीन भारत की आर्थिक व्यवस्था... 55 भारतीय इतिहास का परिवर्तन युग कह सकते हैं।' ई० पू० छठी शताब्दी की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार थीं - कृषिप्रधान, अर्थव्यवस्था, कबायली संरचना में दरार, वर्ण-व्यवस्था की स्थापना तथा क्षेत्रगत साम्राज्यों का उत्कर्ष । युद्ध और कृषि दोनों में लोहे के प्रयोग से मूलभूत सामाजिक परिवर्तन का प्रादुर्भाव हुआ। लोहे के फाल के व्यवहार से खेती में क्रांति से व्यापक सामाजिक क्रांति का मार्ग प्रशस्त हुआ। तकनीकी विकास के दृष्टिकोण से यह युग लौह-युग के आरम्भ का काल माना जाता है। कृषक अपनी आवश्यकता से अधिक उत्पादन की क्षमता रखने लगे। कृषि के विकास के साथ-साथ शिल्पों और नगरों का भी विकास हुआ। व्यक्तिगत सम्पत्ति का उत्तरोत्तर विकास हुआ और समाज में धनाढ्यों की प्रतिष्ठा बढ़ी। बौद्ध आगम में धनाढ्यों गहपतियों का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। ये दूर-दूर जाकर व्यापार कार्य करते तथा रत्नों एवं धातुओं का संग्रह करते थे। व्यापारी वर्ग व्यापार को समुचित ढंग से चलाने के लिए व्यापार-समितियों का निर्माण करते थे। ये व्यापार समितियां इनके व्यापार में सहायक सिद्ध होती थीं। इस प्रकार आर्थिक क्षेत्र में नई-नई संभावनाएं दिखाई देने लगी तथा लोग आर्थिक क्षेत्र में आई इस सम्पन्नता में और वृद्धि करने को उत्सुक थे। लेकिन जिस वैदिक समाज ने उत्पादन में लौह तकनीक के प्रयोग तथा प्रसार की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उसी समाज की अनेक प्राचीन मान्यताएं आर्थिक प्रगति के लिए अनुकूल नहीं थी। ब्राह्मण तथा क्षत्रिय वर्ग को व्यापार में संलग्न होने की मनाही थी। वैश्य वर्ग जो आर्थिक व्यवस्था में प्रमुख भूमिका निभा रहा था, सम्मान की दृष्टि से समाज में तीसरी श्रेणी में आता था। समुद्री व्यापार को वैदिक परम्परा के धार्मिक ग्रन्थों में निन्दित माना गया है। होने वाले साम्राज्यवादी युद्धों में व्यापारी वर्ग की ही अधिक हानि होती थी। युद्ध की स्थिति में व्यापारियों की सम्पत्ति की सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाती थी। इस काल में विधि निर्माताओं ने सूद तथा ब्याज प्रथा की निन्दा की है, जैसा कि आपस्तम्ब तथा बौद्धायन धर्मसूत्रों में उल्लिखित है। इस प्रकार उपरोक्त कारण आर्थिक प्रगति में बाधक सिद्ध हो रहे थे। ऐसे समय में बौद्ध धर्म की अनेक शिक्षाएं नए आर्थिक परिवर्तनों के अनुकूल सिद्ध हो रही थी
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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