________________
बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का प्राचीन भारत
की आर्थिक व्यवस्था पर प्रभाव
आनन्द शंकर चौधरी
प्रत्येक काल में समाज का उत्कर्ष मनुष्य के आर्थिक जीवन की सम्पन्नता, समुन्नति और सुख-सुविधा पर निर्भर करता रहा है। प्रत्येक व्यक्ति का जीवन आर्थिक विकास से प्रभावित होता है। समय-सयम पर मनुष्य के आर्थिक कार्यक्रम उसकी आवश्यकताओं के अनुरूप घटते-बढ़ते और कभी-कभी परिवर्तित भी होते रहे हैं। परिस्थितियों के कारण समयानुसार आर्थिक कार्यक्रमों में संशोधन एवं परिवर्धन भी होते रहे हैं जो सामाजिक संरचना में परिवर्तन के लिए भी उत्तरदायी है। छठी शताब्दी ई० पू० में बौद्ध धर्म के उदय के साथ ही प्राचीन भारत में नवीन आर्थिक संरचनाओं का दौर शुरू हो गया जो लम्बे समय तक प्राचीन भारत की आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित किया। जिसका प्रभाव तत्कालीन समाज, धर्म एवं राजनीति पर स्पष्ट देखा जा सकता है।
महात्मा बुद्ध के समय से जरा सा पहले की भारतीय संस्कृति का यदि सूक्ष्म निरीक्षण करें तो विदित होता है कि इस समय के विचारक, दार्शनिक, सामाजिक व्यवस्थाकार आदि वर्तमान को भविष्य की आशंकाओं से परिचित कराने का भरसक प्रयत्न कर रहे थे। इस समय समाज में दो स्पष्ट वर्ग उभर रहे थे, एक तो वे जो वैदिक धर्म, कर्मकाण्ड, ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देने तथा देवी-देवताओं को पूजने में ही संतुष्टि का अनुभव करते थे, और दूसरे वे जो इस प्रकार की रीति-रिवाज से केवल असंतुष्ट ही नहीं वरन उनके विरुद्ध प्रति-क्रिया भी अभिव्यक्त कर रहे थे। छठी शताब्दी ई० पू० के इस काल को