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जैनाचार्यों की प्रेरणा से जीवों के कल्याण हेतु अकबर द्वारा...
संदर्भ 1. जैन, नीना-मुगल सम्राटों की धार्मिक-नीति पर जैन संतों का प्रभाव (1555-1658
तक) शिवपुरी, मध्यप्रदेश, 1991, पृ० 48-50 तक। 2. सूरीश्वर व सम्राट, कृष्णलाल वर्मा, पृ० 81 3. अबुलफजल के अनुसार उक्त मेवाडे मेवात के रहने वाले थे और दौड़ने वाले के नाम
से प्रसिद्ध थे। ये किसी पत्र आदि को दौड़ कर यथा स्थान पहुंचाते थे। आइन-ए-अकबरी में ऐसे 1000 धावकों की विस्तृत सूची दी गयी है। (विस्तार हेतु देखिये -
आइन-ए-अकबरी, ब्लॉच मैन द्वारा अनुवादित। पृ० 262) 4. उक्त मुद्दे पर गुरु भगवन्त ने काफी विचार विमर्श किया। कालान्तर में राजा का
अनुग्रह/निवेदन समझकर विहार करने का निर्णय लिया। 5. मनुस्मृति में भी वर्णन आता है कि शरीर पीड़ित होने पर भी दिन व रात्रियों में सूक्ष्म
जीवों की रक्षा के लिए सदा भूमि का सूक्ष्मावलोकन कर चलना चाहिये। 6. त्यागियों के लिए धातु का स्पर्श करना सख्त मना है। अत: बादशाह असमंजस में पड़
गया कि सूरिजी को कहाँ बैठाया जाये। 7. बादशाह ने ईश्वर और खुदा में भेद पूछा। तो सूरिजी ने उत्तर दिया कि ईश्वर और खुदा
में नाम मात्र के अतिरिक्त कोई अन्तर नहीं है, और वास्तव में देखा जाये तो यह भेद जीवों के कल्याणार्थ है। क्योंकि विचित्र रूपा खलु चित्र वृत्तयः अर्थात जीवों की चित्तवृत्तियां अनेक प्रकार की हैं। देव, महादेव, शिव शंकर, हरि, ब्रह्मा, परमेष्टी, स्वयंभू, त्रिकालविद्, भगवान, तीर्थंकर, केवली, जिनेश्वरी, विरात आदि ईश्वर के
अनेक नाम हैं। इसके अर्थ में नहीं अपितु नामों में ही विवाद है। 8. विक्रम संवत - 1639 अर्थात् सन 1582 ई० को उक्त फरमान जारी हुआ। 9. हीरविजयसूरिरास - प० ऋषभदास पृ० 182, ढाल पांचवीं भानुचन्द्रगणिचरित -
भूमिका, प्रस्तुतिकरण श्री अगरचन्द्र भवरलालजी नाहटा, पृ० 7, जैन ऐतिहासिक
काव्य संचय, भावनगर, पृ० 201 10. आगरा में पधारे पू० सूरिजी के दर्शन निमित्त अपनी सेना के साथ अकबर पधारा और
दर्शन कर धन्य हुआ। तत्कालीन ग्रन्थों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि गुरुदेव के
अनरोध पर उसने जजिया कर लेना बंद कर दिया, परन्तु गुजरात राज्य में यह कर लिया जाता था। सम्भवतः उक्त क्षेत्र बादशाह के अधिकार में नहीं था। परन्तु हीरसौभाग्यकाव्य टीका के 14वें सर्ग में 271वें श्लोक (जेजियाकाख्यो गौर्जर कर विशेषः) से ज्ञात होता है कि कालान्तर में चलकर गुजरात क्षेत्र भी उक्त कर से मुक्त हो गया। विस्तार हेतु देखिए -पू० देवमविमलगणि सर्ग - 14, जैन ऐतिहासिक गुर्जर काव्य संग्रह, पृ० 89, में शत्रुन्जय व गिरनार आदि स्थानों के लिए जजिया तीर्थ यात्री कर बंद करने का उल्लेख है।