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श्रमण-संस्कृति उक्त फरमान के साथ अकबर ने अनुरोध करते हुए कहा कि..... ...पू० सूरिजी मेरे अनुचर मांसाहार व मद्यपान के अति प्रेमी हैं, उन्हें जीव हिंसा की बात एकदम रुचिकर नहीं लगती, अतः ये व्यसन मुझे धीरे-धीरे बंद कराने की अनुमति प्रदान करें। अब पूर्व की भांति मैं भी शिकार नहीं करूंगा, आप के अनुरोध का पूर्णतः पालन करूंगा, साथ ही दरबार में ऐसा प्रबन्ध करूंगा कि किसी भी जीव/प्राणीमात्र को किसी तरह की कोई तकलीफ न
हो।
___ कालान्तर में अकबर ने पू० सूरिजी को जैन गुरु ही नहीं अपितु 'जगदगुरु' के पद से नवाजा। साथ ही दरबार में ही रहने का आग्रह किया। परन्तु योगी, संन्यासी, सन्त और जैन गुरु भगवन्त किसी एक स्थान नहीं अपितु भ्रमण कर समाज को आध्यात्मिक दृष्टि देकर व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए प्रयासरत रहते हैं। समयोपरान्त गुरुदेव ने शिष्यों के साथ अहमदाबाद (गुजरात) के लिए विहार किया।
पुनः 1640 ई० में मुगल शासकों के आग्रह पर स्वामी जी ने फतेहपुर सीकरी में चातुर्मास किया। इनके धर्मोपदेशों के माध्यम से श्रावक मंडल/जनता को सचेत किया गया कि पर्युषण पर्व से ही सारे राज्य में अहिंसा का पालन किया जाये। जिसको हजारों लोगों ने एक मत से स्वीकार किया। इस सभा में अनेक प्रान्तों के मुगल प्रान्तपति भी उपस्थित थे।
उक्त फरमान श्री कैलाससागरसूरि, श्री महावीर जैन, अराधना केन्द्र, अहमदाबाद, गुजरात के सम्राट सम्प्रति संग्रहालय में सुरक्षित है। जिसमें गुजरात व सौराष्ट्र मुल्क के लिए जैनाचार्यों की प्रेरणा से जीवों के कल्याण हेतु सम्राट अकबर द्वारा आदेशित उर्दू व पारसी भाषा के उत्क्रीष्ट अक्षरों में हाथ से लिपिबद्ध किया गया है। नीचे अकबर द्वारा जारी मुद्रा की सील/मोहर स्पष्ट दृष्टिगोचित है, साथ ही उक्त मंत्री का दस्खत है। ___फरमान जारी करने की यह परम्परा अकबर के पश्चात् 'नूरअल-दीन जहांगीर' (1605-1627) व 'शाहजहाँ' (1627-1658) इत्यादि अन्य मुगल बादशाहों ने भी जारी रखा।