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श्रमण-संस्कृति बन्धु और प्रतिशरण माना है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि कर्म के अनुसार व्यक्ति का मूल्यांकन अथवा जाति-वर्ग के निर्धारण की यह धारणा निश्चय ही जन्माधृत वर्ण भेद की ब्राह्मण-धारणा तथा वैदिक परम्परा के हिंसामय यज्ञों की विरोधी थी। साथ ही इसमें तत्कालीन भौतिक संस्कृति के स्पर्धापूर्ण वातावरण में एक विपन्न व्यक्ति को भी अपने कर्मों के माध्यम से सम्पन्न बनने की प्रेरणा थी।
बौद्ध धर्म के महायान सम्प्रदाय के अन्तर्गत बोद्धिसत्व की अवधारणा भी समाज के सभी वर्गों के हितरक्षण एवं मुक्ति के सार्थक प्रयास का द्योतक है। बोधिसत्व की अवधारणा निम्न स्वार्थवाद एवं संकेन्द्रित आत्मकेन्द्रीयतावाद के निषेध का पर्याय है और यही महायान धर्म के भौतिक आदर्श का यथार्थ प्रतिबिम्बन करता है। वस्तुतः यह हीनयान धर्म के नैतिक आदर्श 'अर्हत' की अवधारणा से सर्वथा भिन्न है। महायान ने अपनी उदार प्रवृत्ति एवं प्रगतिशीलता के कारण हीनयान के स्वार्थवाद और आत्मकेन्द्रीयता का निषेध करते हुए हीनयान के आदर्श को भी अस्वीकार कर दिया। महायान ने अपनी उदारवृत्ति के कारण व्यक्तिगत निर्वाण को अपना अदर्श नहीं बनाया। उसने एक ऐसे आदर्श को स्वीकार किया जिसमें प्राणिमात्र की मुक्ति का सन्देश है। उसने निर्वाण के उस आदर्श पर बल दिया जिसमें स्वदुःख-निवृत्ति के साथ जीव मात्र की दुःख निवृत्ति का संकल्प दिखायी दे। महायान ने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लोगों के समक्ष बोधिसत्व का आदर्श रखा। बोधिसत्व का शाब्दिक अर्थ है -
बोधि (ज्ञान) प्राप्त करने का इच्छुक व्यक्ति।'
बोधौ ज्ञाने सत्वं अभिप्रायोऽस्येति बोधिसत्वः।
बोधिसत्व वह महाप्राणी है जो सम्बोधि प्राप्त करता है। बोधिसत्व हीनयान के अरहत के समान केवल व्यक्तिगत कल्याण के लिए प्रयास नहीं करता वरन् समष्टिगत कल्याण के लिए प्रयास करता है। अर्हत स्वकष्टों से मुक्त होकर मुक्ति का एहसास करता है, किन्तु इस बात की चिन्ता कथमपि नहीं करता कि इस विशाल विश्व में करोड़ों प्राणि अनेकानेक क्लेशों में अपने अमूल्य जीवन को निरर्थक बिताते हैं। बोधिसत्व वह है जो सभी प्राणियों को