________________
बौद्ध वाङ्मय में महिला विमर्श
13 अर्हत्त्व पा चुकी थी। उसके बाद खेमा अपने महान अन्तर्ज्ञान के लिए जाने लगी और खुद बुद्ध ने उसे उच्च स्थान प्रदान किया। उसी प्रकार एक समारोह से लौटती हुई सुजाता ने बुद्ध का प्रवचन सुना और उसने रूप व अर्थ में धर्म की पूर्ण पकड़ के साथ अर्हत्व प्राप्त किया। किसागौतमी ने भी बुद्ध द्वारा दिये गये धर्म उपदेश को समझने के बाद अर्हत्व प्राप्त किया। भिक्षुणी समा के बारे में कहा जाता है कि उसने आनन्द के उपदेशों को सुना और इस प्रकार अर्हत् बन गयी। चित्ता को महाप्रजापति गौतमी ने धर्म में दीक्षित किया था, जिसके बाद उसने अर्हत्व प्राप्त किया। उसी प्रकार, भिक्षुणी मुत्ता ने न केवल तीन अंकुशाकार चीजों-चक्की, ओखली व पति से, बल्कि पुनर्जन्म व मृत्यु से भी मुक्ति पाई। स्पष्ट है कि बुद्ध ने महिलाओं को पुरुषों के समान ही आदर किया व उनमें से कई को अपनी शिक्षाएं स्वयं प्रदान की।"
भिक्षुणी-संघ की स्थापना, भिक्षु-संघ की स्थापना के पांच वर्षों बाद की गयी थी। भिक्षुणी-संघ के आरम्भिक चरणों में, भिक्षुणियों ने भिक्षुओं से न केवल अनुशासनिक कार्यों के विचित्र रूपों को, बल्कि ज्ञान के विभिन्न पक्षों को भी सीखा होगा। ध्यातव्य है कि बुद्ध द्वारा महिलाओं को दिये गये सामाजिक व आध्यात्मिक अवसर अनपेक्षित रूप से क्रान्तिकारी होने के कारण, पुरुषों, विशेषकर भिक्षुओं द्वारा इस पर आपत्ति किया जाना स्वाभाविक प्रतीत होता है। परिणामस्वरूप, उन्हें इस वास्तविकता का एहसास अवश्य रहा होगा कि उनकी शिष्याएं निरन्तर प्रताड़ित व अपमानित की जाएंगी। इसके अतिरिक्त, यह भय भी स्वाभाविक था कि भिक्षुणियां पुरुष-हिंसा की शिकार होंगी और वह भिक्षणियों के विरुद्ध पुरुष-हिंसा की विभिन्न घटनाओं से तथा इस प्रकार की हिंसा को रोकने के लिए बनाये गये नियमों से भी सिद्ध होता है। इस प्रकार जैसा कि रीटा ग्रॉस ने संकेत किया है कि इन नियमों द्वारा महिलाओं के अकेली यात्रा व काम करने पर सामान्यतः प्रतिबन्ध लगाया गया था, ठीक उसी प्रकार जैसे कि आज हम प्रायः महिलाओं को असामान्य समय में असुरक्षित जगहों पर न जाने का सुझाव देते हुए उन पर सम्भावित पुरुष-हिंसा का प्रतिकार करते हैं। मानवीय बस्तियों की शहरी सीमा पर विहारों की स्थापना के परिणामस्वरूप, भिक्षुणियों के आम लोगों द्वारा छिद्रान्वेषण, फायदा