________________
श्रमण-संस्कृति
31. याज्ञवल्क्य पर मिताक्षरा 2/143, 115, 123, 124, 135 प्रभावकचरित, पृ० 337-381 32. पुल्यश्च संविभागाही : समं पुत्रैः समाशकै: । महापुराण 38/154।
408
33. एस०एन० राय - पौराणिक धर्म एवं समाज 1968, पृ० 222 ।
34. कल्पसूत्र 91 - नौ खलुमेकत्पई अम्मापितीहिं जीवतेंही मुण्डे भविन्ता अगारवासाओ अखगरियं पत्पइए ।
35. ज्ञाताधर्मकथा 8/186 तए ठां मल्ली अरहा. .. केवलनाणदंसणे समुत्पत्रे ।
36. ऋषिमण्डलस्तवन 208 अज्जा वि वंभि-सुन्दरि - राइमई चन्द्रणा पमुखाओं । 37. उत्तराध्ययन सूत्र 22 तथा दशवैकालिक चूर्णी पृ० 87-88 मणिविजय सीरीज भावनगर । ती सो वयणं सोच्चा सजयाए सुभासियं । अंकुसेण जहा नागो धम्मे संपडिवाइयो । । 38. आवश्यकचूर्णी भाग-1 पृ० 211 भवं वंभी - सुन्दरीओ पत्थवेति.....इमंव भणितो । ठाकर हत्थिं विलग्गस्थ केवलनांण उपपज्जइ । ।
39. कल्पसूत्र क्रमशः 197, 167, 157, व 134 प्राकृत भारती, जयपुर 1977 ई० ।