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बौद्ध धर्म एवं भिक्षुणी संघ
धर्मेन्द्र कुमार
भारतवर्ष अनेक धर्मों का संगम है। सभी धर्मों में पुरुषों के अतिरिक्त स्त्रियों को भी स्थान दिया गया है। छठी शताब्दी ई० पू० भारत वर्ष में हिन्दू धर्म के विरोधी धर्म के रूप में बौद्ध धर्म का उदय हुआ। बौद्ध धर्म ने भी स्त्रियों को दीक्षित होने का अवसर प्रदान किया जिससे उन्हें समाज में अपनी पहचान बनाने का अवसर मिला।
बौद्ध धर्म में भिक्षुणी वर्ग का विशिष्ट स्थान था, इसका कारण था नारी समाज के सभी वर्गों का भिक्षुणी वर्ग से प्रकट या अप्रकट रूप से सन्निकटता। उस समय नारी समाज में सूत्र कालीन व्यवस्था के विरोध में जो क्रांति हुई थी, उसका प्रमुख कारण भिक्षुणी वर्ग के प्रति नारी का आकर्षण एवं समादर भाव ही था।
बौद्ध भिक्षुणी संघ की स्थापना बौद्ध भिक्षु संघ के बाद हुई थी। वैशाली की कुटागारशाला में शंकित मन से बुद्ध ने स्त्रियों को संघ में प्रवेश देने का निर्णय लिया और तभी भिक्षुणी संघ की स्थापना हुई। भिक्षुणी संघ की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका बुद्ध के प्रधान शिष्य आनन्द ने निभाई। भिक्षुणी संघ की स्थापना का श्रेय महाप्रजापति गौतमी को भी जाता है। गौतमी चलते-चलते बिहार कुटागारशाला में पहुंची। यहीं पर गौतमी की मुलाकात आनन्द से हुआ, तब स्वयं आनन्द ने जाकर बुद्ध से स्त्रियों को संघ में प्रवेश देने की अनुमति मांगी। गौतमी तथा अन्य स्त्रियों को प्रव्रज्या का निर्देश देने के पहले उन्होंने आठ शर्ते रखीं, जिन्हें आठ गुरु धर्म कहा गया। 12 वर्ष से कम