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________________ 404 श्रमण-संस्कृति गृहस्थाश्रम की परिभाषा देते हुए महावीर स्वामी ने कहा है कि सचित्त पानी पीना, बीजकाय का भक्षण करना, आहार कर्मी लेन ओर स्त्री का प्रसंग करने वाला गृहस्थ होता है। जो व्यक्ति स्त्री सेवी नहीं है और काम भोग को रोग सदृश देखता है, वही मोक्ष प्राप्त कर सकता है। जैनेतर, ब्राह्मणों के प्रति इनकी दृष्टि सिद्धान्त अनुदार ही थी। जैन पुराणों के अनुसार ब्राह्मणत्व के आधारभूत तीन कारण हैं- तप, शास्त्र ज्ञान तथा जाति। ध्यान वह अग्नि है जिससे ब्राह्मणत्व का सिद्धि होती है और उसकी "शान्त-दान्त-चित्त" की मुक्ति का कारण बनती है। पद्यपुराण के अनुसार ब्राह्मण वह व्यक्ति है जो ऋषभदेव रूपी ब्रह्मा का भक्त है। जैन धर्म का आधारतत्त्व मन और कायाशुद्धि पर विशेष बल देता है। इसीलिए ब्राह्मण धर्म के यज्ञ और कर्मकाण्ड का इस धर्म में विरोध है। बाह्यशुद्धि के स्थान पर अन्तः शुद्धि पर अधिक बल दिया गया है तथा सच्चरित्रता और सदाचरण उसके प्रधान आधार माने गये हैं। मनुष्य के चारित्रिक उत्थान हेतु जैन धर्म में अहिंसा, सत्य, अस्तय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह वृत्त के पालन पर बल दिया गया है। मुनिजनों के लिए इनका पूर्णरूपेण पालन करना अनिवार्य था। गृहस्थों द्वारा उक्त वृत्तियों का पूर्णरूपेण पालन करना सम्भव नहीं था। अतः उन्हें उक्त वृतों के आंशिक पालन की अनुमति दी गयी थी। मोक्ष के सम्बन्ध में जैन ग्रन्थों में कहा गया है विमोक्ष जीवन का अन्तिम लक्ष्य है। अतः जैनधर्म में नैतिक आधारतत्व के महत्त्व और पालन पर विशेष बल दिया गया है। जैन धर्म में सामाजिक व्यवस्था को संतुलित बनाने के लिए तथा वंश-विस्तारार्थ सन्तानोत्पत्ति को आवश्यक माना गया है। महापुराणों में कहा गया है कि विवाह क्रिया गृहस्थों का धर्म है और सन्तान रक्षा गृहस्थों का प्रधान कार्य है क्योंकि विवाह न करने से सन्तति का उच्छेद हो जाता है और सन्तति के उच्छेद होने से धर्म का उच्छेद होता है। जैन धर्म में भगवान ऋषभदेव को ही विवाह संस्था का संस्थापक बताया गया है। जैनाचार्यों के अनुसार पुनर्विवाह तथा विधवा-विवाह के प्रेरक ऋषभदेव थे। जैन परम्परा के अनुसार पूर्वकाल में यौवन प्राप्त करने के बाद बहन ही पत्नी बनती थी इस प्रथा को समाप्त कर ऋषभदेव ही विवाह संस्था की स्थापना की।
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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