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________________ 372 श्रमण-संस्कृति का निर्माण चैत्यों के आधार पर हुआ माना जाता है। मंदिर के चौखटों को स्तूप के तोरणद्वार पर अंकित प्रतीक चिह्नों के सहारे, देवांकन से सजाया जाने लगा। जिस प्रकार से चैत्यों के द्वार पर स्तम्भ निर्मित होते थे, उसी प्रकार हिन्दू मंदिरों के प्रवेश द्वार पर देव - ध्वज लगा मिलता है। जिस प्रकार से भारतीय संस्कृति में मोक्ष को अन्तिम लक्ष्य तथा मृत्यु को सत्य माना गया है, उसी प्रकार बौद्ध धर्म में भी इसी मान्यता को स्वीकार किया जाता है। भारतीय राजनीति पर भी बौद्ध धर्म के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। बौद्ध धर्म में गणराज्यों की शासन व्यवस्था निर्धारित की गयी। संघ की बैठक के समान ही गणराज्यों की बैठक बुलायी जाती थी। जिस प्रकार से गणमुख्य अनुशासन रखता था ठीक उसी प्रकार संघमुख्य भी अनुशासन को महत्व देता था। संघ में प्रत्येक व्यक्ति को बोलने की स्वतंत्रता थी। प्रत्येक व्यक्ति अपना विचार प्रस्तुत करने के लिए पूर्णतया स्वतंत्र होता था। गणपरिषदों में भी यह स्तंत्रता विद्यमान थी। __ जीवों पर दया (अहिंसा) बौद्ध धर्म का प्रमुख अंग था तथा भारतीय संस्कृति में भी इसे महत्व दिया जाता है। जिस प्रकार से सत्य, दया, करुणा, श्रद्धा, अहिंसा, नैतिकता आदि को भारतीय संस्कृति की आत्मा कहा जाता है उसी प्रकार बौद्ध धर्म में इसे विशेष स्थान प्रदान किया गया तथा इसके विकास के लिए निरंतर प्रयास किया गया। समाज में किसी भी व्यक्ति का मूल्यांकन उसकी जाति से नहीं अपितु उसके आचरण से किया जाता है। बौद्ध धर्म की भी यही मान्यता है। इस धर्म में जाति-पाति, भेद-भाव न था, तभी बुद्ध ने कहा है कि 'जाति मत पूछो आचरण पूछो' । बौद्ध धर्म में प्रतीक चिह्नों की पूजा के आधार पर ही हिन्दू धर्म में मूर्ति पूजा को बल मिला। उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि भारतीय संस्कृति में बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण योगदान है। सन्दर्भ 1. रीज डेविस, बुद्धिज्म। 2. ननिनाक्ष दन्त, स्प्रेड आफ बुद्धिज्म । 3. भरत सिंह, बौद्ध तथा अन्य भारतीय दर्शन। 5. डॉ० शिव स्वरूप सहाय, प्रा० भारतीय धर्म एवं दर्शन।
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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