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श्रमण-संस्कृति जिसे लोक भाषा कहा जा सकता है। जिस क्षेत्र में उपदेश दिये गये, वह उस भाषा में थे, जो उसी क्षेत्र की भाषा थी। यदि प्राकृत गौतम बुद्ध ने उपदेश का माध्यम बनाया तो उसका कारण यह था कि मगध और निकट के क्षेत्रों में संस्कृति का स्थान इसने ले लिया था। अर्द्धमागधी' को जो महत्व इसने दिया, उसी कारण है कि बाद में अपभ्रंश का विकास हुआ। जैन धर्म ने मराठी, गुजराती, राजस्थानी, भाषाओं को समृद्ध किया। दक्षिण भारत के शासकों ने जिसमें राष्ट्रकूट प्रमुख थे, जैन धर्म को राजाश्रय दिया। बौद्ध धर्म के महायान
और जैन धर्म एवं दर्शन में कला को जो समृद्ध प्रदान की वह निर्विवाद है। भारत में ही नहीं मध्य एशिया से लेकर दक्षिण पूर्वी एशिया तक ये धर्म कला के वाहक बने। अन्त में यह भी उल्लेखनीय है कि भारत के प्रमुख शिक्षा केन्द्र के विकास में इन धर्मो की महती भूमिका थी, जिसके उदाहरण नालन्दा, विक्रमशीला, इत्यादि अर्न्तराष्ट्रीय ख्यातिलब्ध शिक्षा केन्द्र है।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि वैदिक संस्कृति में जाति व्यवस्था की कठोरता को शिथिल करने, नारी को साम्पत्तिक अधिकार देने, जन्म के स्थान पर कर्म को महत्व देने, हिंसा के त्याग और उसके स्थान पर पशु संरक्षण पर बल देने इत्यादि के साथ शिक्षा और कला के उत्थान में इन धर्मों ने न केवल योगदान दिया अपितु वैदिक धर्म एवं दर्शन में उसको महत्व देने का भी ये कारण बने। उल्लेखनीय है कि इस महत्व का ही यह कारण था कि बुद्ध को वैदिक संस्कृति ने एक अवतार मान लिया।
संदर्भ 1. इनसाइक्लोपिडिया ऑफ रिलिजन एण्ड एथिक्स जिल्द, 08 पृ० 88 2. सी०डी० वक, ए डिक्शनेरी ऑफ सेलेक्टेड सिनानिम्स इन द प्रिन्सिपल इन्डो-यूरोपियन
लेंग्वेजेज। 3. मनु 4209, विष्णु 51.7, गौतम 17.17, वशिष्ठ 14.10, याज्ञवल्क्य, 1.161, आपस्तम्ब
1.6.18.161 4. द्रष्टव्य, हिस्ट्री ऑफ धर्म शास्त्र वाल्यूम 3, पृ० 606,712। 5. कात्यायन स्मृति सारोद्धार, सम्पादक पी० वी० काणे, श्लोक संख्या 894 से 932
तक। 6. आर० एस० शर्मा, मेटेरियल कल्चर एण्ड सोशल फार्मेशन्स पृ० 121, 122। 7. द्रष्टव्य, ए० एस० अल्तेकर, एजुकेशन इन एन्शियेन्ट इण्डिया, अध्याय 8।