________________
वैदिक संस्कृति पर बौद्धादि धर्म एवं दर्शन का प्रभाव
दूसरी महत्वपूर्ण विशेषता इस धर्म की यह थी कि इन्होंने गणतंत्रात्मक पद्धति को स्वीकार किया । उल्लेखनीय है कि वैदिक संस्कृति राजतंत्र की पोषक रही है उसमें गणतंत्र का कोई स्थान नहीं है। गणतंत्रात्मक पद्धति वैदिक संस्कृति में 'अरट्ट' या 'अराष्ट्र' कही गयी है । जहाँ राजा नहीं होता उसे अराष्ट्र की संज्ञा दी गयी है और गणों का छूआ पानी पीना आपस्तम्ब, विष्णु आदि के धर्मसूत्रों में वर्जित है । गणों के विरोध का कारण यह था कि इनमें जाति व्यवस्था नहीं होती, जबकि वैदिक समाज जातिओं में विभक्त होता है। गणों में व्यक्तिगत साम्पत्तिक अधिकार नहीं होता जब कि वैदिक समाज में व्यक्तिगत स्वामित्व को स्वीकृति मिली है। वैदिक समाज में नारी को साम्पत्तिक अधिकार से वंचित किया गया है और विशेष परिस्थितियों में ही उसे सम्पत्ति पर अधिकार प्राप्त था । जब कि गणों में नारी को सम्पत्ति से वंचित नहीं किया गया है । गणों में यज्ञों का प्राविधान नहीं है क्योंकि यज्ञों में हिंसा होती है जबकि वैदिक संस्कृति यज्ञ प्रधान है और बिना पशु बलि या नर बलि के यज्ञों का सम्पादन सम्भव नहीं होता। कर्म को प्रधान मानने के कारण गणों में ईश्वर अप्रासंगिक थे, और मोक्ष प्राप्ति सद्कर्म से ही माना गया जबकि मोक्ष प्राप्ति के लिए वैदिक संस्कृति में जो पशु बलि को अपरिहार्य मानता था हिंसा अपरिहार्य थी ।
363
प्रभाव की दृष्टि से स्पष्ट है कि वैदिक संस्कृति पर बौद्ध, जैन आदि धर्मों का निश्चय ही प्रभाव परवर्ती काल में दिखाई देता है। वैदिक समाज में कात्यायन आदि की स्मृतियों में स्त्री धर्म की जो अवधारणा मिलती है वह बौद्ध एवं जैन धर्म का ही परिणाम थी । निम्न वर्ण को जो स्थान वैदिक समाज में और उसकी अर्थव्यवस्था में दिखाई देता है उसका कारण भी उपर्युक्त दोनों धर्म थे, क्योंकि इन धर्मों में निम्न वर्ण को प्रमुखता से स्वीकार किया गया। जिस काल में बौद्ध या जैन धर्मों का प्रादुर्भाव हुआ उसमें अर्थव्यवस्था में शीघ्रता से परिवर्तन हो रहा था, जिसका परिणाम यह हुआ कि कृषि का महत्व बढ़ा। कृषि के महत्व ने तत्कालीन आर्थिक जीवन में पशुओं के संरक्षण (गोरखा) को महत्व दिया। इन दो धर्मों ने इसीलिए अहिंसा पर बल दिया अहिंसा के सिद्धान्त ने वैदिक धर्म में भी बाद में चलकर महत्व दिया ।
निःसन्देह कला और भाषा पर इन दोनों धर्मों का प्रभूत प्रभाव दिखायी देता है। इन दोनों ही धर्मों के संस्थापकों ने अपने उपदेश उस भाषा में दिये,