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59 बौद्ध धर्म का वैश्विक अवदान
संजीव कुमार मिश्र
वर्तमान विश्व जिस दूत गति से भौतिकता की ओर अग्रसर हो रहा है, उसका कोई छोर नहीं है। विज्ञान, तकनीकी-प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, नगरीकरण, औद्योगिकरण आदि ने वर्तमान सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व धार्मिक जीवन स्तर में क्रान्तिकारी परिवर्तन किये हैं, जिससे लोगों की जीवन शैली का भी उन्नयन हुआ है। परन्तु इसके साथ ही साथ अनेक नवीन समस्यायें भी वर्तमान परिस्थितियों एवं सामाजिक परिवर्तनों ने उत्पन्न की हैं। मानवता की भावना का ह्रास, हिंसा, सौम्य शक्ति का प्रसार, आतंकवाद, उग्रवाद, अलगाववाद, वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों के बीच बढ़ती हुई वैमनस्यता तथा तनाव आदि ऐसी समस्यायें हैं जो वर्तमान वैश्विक समाज को अन्दर ही अन्दर खोखला कर रही है। अन्धे आधुनिकीकरण के इस युग में शान्ति एवं तनाव से इस द्वन्द्व का निराकरण मानव-सम्यता की रक्षा करने तथा उसके विकास को आगे ले जाने की महत्वपूर्ण शर्त है धर्म। धर्म सामाजिक स्तरीकरण के सोपानीय रूपी भारतीय विरासत का प्रमुख तत्व है, जिसके संरूपण एवं स्थायित्व के सोपानीय रूपी भारतीय विरासत का प्रमुख तत्व है, जिसके संरूपण एवं स्थायित्व की डोर सदैव सुदृढ़ बनी रही। जब सृष्टि की संरचना के मूल तत्व के रूप में जीवन एवं जगत् के अस्तित्व को प्रधान माना गया तब जीवन जगत् के अन्तिम कारण पर विचार मन्थन की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। फलस्वरूप मानव समुदाय को महत्वपूर्ण मान्यता प्राप्त हुई और एक मानव द्वारा दूसरे मानव के हितों की सुरक्षा के निमित्त मानवता की परिकल्पना