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भारतीय संस्कृति एवं जैन धर्म
दिव्या पाण्डेय
बुद्ध के समकालीन अनेक अरूढ़िवादी धर्मोपदेशकों में एक थे वर्धमान जो अनुयायियों में महावीर के नाम से प्रसिद्ध थे। बौद्ध धर्म के इतिहास में जैन धर्म का इतिहास (विजेताओं का धर्म) जिसकी उन्होंने स्थापना की थी, नितान्त भिन्न है। वैसे तो जैन धर्म अपनी सुदृढ़ स्थापना में सफल रहा और कुछ स्थानों में तो अत्यधिक प्रभाव पूर्ण भी रहा किन्तु इसका प्रसार भारत से बाहर न हो सका। यद्यपि जैन धर्म का इतिहास बौद्ध धर्म के इतिहास की भाँति रोचक नहीं है और यह उतना महत्वपूर्ण भी नहीं था किन्तु वह अपनी जन्मभूमि में अति जीवित रहा जहाँ आज भी उसके 2 करोड़ अनुयायी हैं जिसमें ज्यादातर धन सम्पन्न व्यापारी वर्ग विशेष रूप से समाहित हैं। जैन पुराणों तथा जैन साहित्यों में 24 तीर्थंकरों के जन्म सम्बन्धी जो कथायें प्राप्त होती हैं वे बुद्ध सम्बन्धी कथाओं की अपेक्षा कम आकर्षण हैं तथा अधिक आडम्बर पूर्ण और अविश्वसनीय भी हैं परन्तु उनकी ऐतिहासिकता सन्देह की सीमा से परे है।
किन्तु अब प्रश्न यह उठता है कि जैन पुराणों में एवं जैन साहित्यों में इन 24 तीर्थंकरों के विषय में जो वृत्तान्त पाया जाता है उसका आदिमकाल क्या है? इस सम्बन्ध में भारतीय विद्वानों ने भाषा, विषय आदि के आधार पर भारतीय साहित्य का जो कालक्रम निश्चित किया है उसमें सर्वाधिक प्राचीन ऋग्वेद ठहराता है जिसकी रचना 1500-900 के मध्य हुई तथा जिसके पूर्व की कोई साहित्यिक रचना प्राप्त नहीं होती है। जैन पुराणों की दृष्टि से ऋग्वेद का वह सूक्त बहुत महत्वपूर्ण है जिसमें वातरशना मुनियों की स्तुति की गयी है जिससे यह स्पष्ट होता है कि ये मुनि नग्न रहते थे तथा जटा भी धारण करते थे।