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________________ 350 श्रमण-संस्कृति अशोककालीन मौर्य वास्तु की चरम परिणति सारनाथ के सिंह स्तम्भ में दृष्टिगत होती है। सारनाथ का स्तम्भ अशोक ने उस स्थान पर खड़ा किया जहाँ बुद्ध ने प्रथम धर्मोपदेश या धर्मचक्र प्रवर्तन किया स्तम्भ का मूल भाग तो पूर्ववर्ती स्तम्भों की भांति है। पर शीर्ष भाग अपने लालित्य के लिए विश्व विख्यात है। डॉ० अग्रवाल ने सारनाथ स्तम्भ के निर्माण स्तोत्रों का विशद् विवेचन किया है जो अशोक के सार्वभौम व्यक्तित्व को परिलक्षित करने में पूर्णतः समर्थ हैं। अशोक ने सारनाथ में अपना जीवन दर्शन भी आरोपित किया है। धर्मचक्र अशोक की धम्म विजय का स्मरण दिलाता है। पर स्तम्भ की परम्परा वैदिक युग से ही ज्ञात होती है। वैदिक साहित्य में स्थूण, थूण, स्कम्भ, यूप इत्यादि। शब्द स्तम्भ के ही द्योतक हैं। यज्ञीय यूपों से लेकर आवासीय स्तम्भों तक का व्यापक प्रचलन था। स्तम्भ मानव महत्वाकांक्षा के प्रतीक थे। अवाङ्गमुख पद्म पुरुष पूर्णघट का प्रतिरूप है। जो मंगल कलश के रूप में ब्राह्मण एवं बौद्ध धर्म के शुभ का सूचक है। इस प्रकार प्राचीन भारतीय कला के विकास का मूलभूत कारण यही था कि इसका स्तोत्र और प्रेरणा धार्मिक मूल्यों से प्राप्त होता था। बौद्ध धर्म की प्रेरणा से ही कई सौ वर्षों एवं विभिन्न राजवंशों के शासन काल में एक नवीन कला शैली का विकास एवं विस्तार हुआ। बौद्ध वास्तुकला में ही सर्वप्रथम पत्थरों को काटकर निर्माण किया गया अशोक के समय भारतीय कला में पाषाण का प्रयोग व्यापक रूप में हुआ है जिसमें बौद्ध स्तूपों एवं गुफाओं का निर्माण हुआ। स्तूपों की वेदिकाओं एवं तोरणों पर प्रतीकों के माध्यम से भगवान बुद्ध से सम्बन्धित घटनाओं तथा कथाओं को सर्वप्रथम उत्कीर्ण किया गया। सम्भवतः यही कारण है कि अशोककालीन कला के उदाहरण लगभग सत्पूर्ण भारत में प्राप्त होते हैं। शुंग-सातवाहन काल में भरहुत, सांची, अमरावती के स्तूपों का निर्माण हुआ इसी काल में कार्ले, नासिक, भाजा, अजन्ता इत्यादि स्थानों पर शैल्यकृत वास्तुकला के अन्तर्गत चैत्य एवं विहार बनाये गये यह विदित है कि
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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