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अशोक के अभिलेखों की भाषा पर बौद्ध धर्म का प्रभाव
339 है। अशोक ने ये लेख शासन व्यवस्था एवं धार्मिक व्यवस्था की जानकारी देने के लिए पूरे साम्राज्य में खुदवाया। अशोक के लेख सीधे-सादे हैं। उसके केवल दो लेखों में उसका नाम अशोक मिलता है। इसके अधिकांश लेखों में उसके लिये 'देवानप्रियम् प्रियदशिनो राजा' का ही प्रयोग हुआ है। अशोक का पूरा नाम सम्भवतः अशोकवर्द्धन था। राज्याभिषेक के 12 वर्षों बाद उसने लेख खुदवाने का कार्य प्रारम्भ किया। सबसे पहले उसने शिला लेख खुदवाये और बाद में स्तम्भ लेख। ये सारे लेख करीब 25 वर्ष के अरसे में खोदे गये। अशोक के अभिलेख मुख्यतः दो प्रकार के हैं - लघु शिला लेख और चतुदर्श शिलालेख। ब्रह्मगिरी, सिद्धापुर, जटिंग रामेश्वर, रूपनाथ, सहसाराम आदि स्थानों के लेख और बैराट से भी लघु शिलालेख मिला है। धौली, जौगढ़, भलि के लेख के ऊपर चट्टान को काटकर एक हाथी की आकृति तैयार की गयी है
और इसी पर चतुर्दश शिलालेख खुदे हैं। गिरनार, कलसी, मानसेहरा, शहबाजगढ़ी, ऐर्रागुड्डी में भी चतुर्दश शिलालेख मिले हैं। कलसी की चट्टान पर भी हाथी की आकृति है और उसके पैरों के बीच में ब्राह्मी लिपि में 'गज तमे' शब्द खुदा है। बराबर पहाड़ी पर चार कृत्रिम गुफायें हैं। तीन पर अशोक के लघु शिलालेख हैं।
अशोक ने कई स्तम्भ खड़े करके उन पर लेख खुदवाया है। ये स्तम्भ लेख एक ही शिलाखण्ड के हैं और इन पर बढ़िया पालिश की गयी है, ये चुनार के बलुआ पत्थर से बने हैं। कुछ 16-17 मीटर लम्बे, भार करीब 50 टन है।
दिल्ली टोपरा स्तम्भ, दिल्ली मेरठ स्तम्भ, लुम्बिनी स्तम्भ लेख में अशोक के लेख हैं। निगाली सागर (नेपाल), चम्पारण में तीन, लौरिया अरराज, लौरिया नन्दनगढ़ और रामपुरवा स्तम्भ लेख है। सांची, सारनाथ में भी अशोक स्तम्भ खड़े किये गये हैं। कुछ ऐसे स्तम्भ भी हैं, जिन पर लेख नहीं है। भुवनेश्वर के भाष्करेश्वर मन्दिर में खण्डित अशोक स्तम्भ की शिवलिंग के रूप में पूजा होती है। पूरे देश में अशोक के अभिलेख मिले हैं परन्तु पाटलिपुत्र से एक भी शिलालेख नहीं मिला है।
__ अशोक के लेखों की भाषा प्राकृत है और लिपि ब्राह्मी। यह वही भाषा है, जिसमें महात्मा बुद्ध ने अपने उपदेश दिये हैं। खरोष्ठि भाषा में लिखे गये