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अहिंसा का सिद्धान्त और उसकी वर्तमान प्रासंगिकता
333 नेतृत्व किया। गांधीजी के दार्शनिक सिद्धान्त सभी धर्मों में समान रूप से पाये जाते हैं और उनमें सत्य और अहिंसा को विशेष महत्व प्राप्त है। गांधी द्वारा प्रतिपादित अहिंसा का सिद्धान्त ___ अहिंसा गांधीवादी दर्शन का मूल आधार है। यद्यपि महात्मा गांधी ने अहिंसा के मौलिक सिद्धान्त को प्रतिपादित नहीं किया लेकिन इसे एक सक्रिय जीवन पद्धति के रूप में स्वयं के जीवन के रूप में उतारा । अपने जीवन के प्रयोगों के साथ साथ गांधी जी ने अहिंसा के सामाजिक पक्ष को भी व्यवहारिक रूप दिया।
महात्मा गांधी की दृष्टि में अहिंसा के दो पक्ष हैं - सकारात्मक और नकारात्मक। किसी प्राणी को काम, क्रोध तथा विद्वेष के अधीन होकर हिंसा न पहुंचाना इसका नकारात्मक रूप है, इससे अहिंसा के पूरे स्वरूप का ज्ञान नहीं हो पाता है। इसका यथार्थ रूप तो इसके सकारात्मक रूप से पता चलता है। भाव पक्ष वाली अहिंसा को सार्वभौम प्रेम और करुणा की भावना कहा जाता है। स्वयं महात्मा गांधी के शब्दों में -'यदि कायरता और हिंसा में से किसी एक को चुनना हो तो मैं हिंसा को ही पसन्द करुंगा। दूसरों को न मारकर स्वयं ही मरने का जो धीरता पूर्ण साहस है मैं उसी की साधना करता हूँ। लेकिन जिसमें ऐसा साहस नहीं है वह भी भागते हुए लज्जाजनक मृत्यु का वरण न करें - मैं तो कहूंगा, बल्कि वह तो मरने के साथ मारने की भी कोशिश करें क्योंकि जो इस तरह भागता है वह अपने मन पर अन्याय करता है। वह इसलिए भागता है कि मारते मारते उसमें मरने का साहस नहीं है। एक समूची जाति के निस्तेज होने की अपेक्षा मैं हिंसा को हजार बार अच्छा समझंगा। भारत स्वयं ही अपने अपमान का पंगु साक्षी बनकर बैठा रहे इसके बदले अपने हाथों में हथियार उठा लेने को तैयार हो तो इसे मैं बहुत अधिक पसन्द करूंगा।"
बेशक बाद में गांधी ने इतना और जोड़ दिया - 'मैं जानता हूँ कि हिंसा की अपेक्षा अहिंसा कई गुनी अच्छी है। मैं जानता हूँ कि मैं आग से खेल रहा हूँ फिर भी मैंने यह खतरा लिया - अहिंसा मेरे विश्वास और नीति की पहली और आखिरी शर्त है - यह भी जानता हूँ कि दण्ड की अपेक्षा क्षमा अधिक