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श्रमण-संस्कृति भी इसे बढ़कर मानते थे। बौद्ध धर्म ने न केवल भारत अपितु विश्व के देशों को अहिंसा, शान्ति, बन्धुत्व, सह-अस्तित्व आदि का आदर्श बताया। इसके कारण ही भारत का विश्व के देशों पर नैतिक आधिपत्य कायम हुआ। बुद्ध ने मानव जाति की समानता का आदर्श प्रस्तुत किया।
बौद्ध धर्म के माध्यम से भारत का सांस्कृतिक सम्पर्क विश्व के विभिन्न देशों के साथ स्थापित हुआ। भारत के भिक्षुओं ने विश्व के विभिन्न भागों में जाकर अपने सिद्धान्तों का प्रचार-प्रसार किया। महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं से आकर्षित होकर शक, पार्थियन, कुषाण आदि विदेशी जातियों ने बौद्ध धर्म को ग्रहण कर लिया। यवन शासक मेनाण्डर तथा कुषाण शासक कनिष्क ने इसे राजधर्म बनाया और अपने साम्राज्य के साधनों को इसके प्रचार में लगा दिया। अनेक विदेशी यात्री तथा विद्वान बौद्धधर्म का अध्ययन करने तथा पवित्र बौद्ध स्थलों को देखने की लालसा से भारत में वर्षों तक निवास कर इस धर्म का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त किया। आज भी विश्व की एक तिहाई जनता बौद्ध धर्म तथा उसके आदर्शों में अपनी श्रद्धा रखती है।
बौद्ध धर्म की सर्वाधिक महत्वपूर्ण देन भारतीय कला एवं स्थापत्य के विकास में रही। इस धर्म की प्रेरणा पाकर शासकों एवं श्रद्धालु जनता द्वारा अनेक स्तूप, विहार, चैत्यगृह, गुहायें, मूर्तियां आदि निर्मित की गयी जिन्होंने भारतीय कला को समृद्धिशाली बनाया। सांची, सारनाथ, भरहुत आदि के स्तूप, अजन्ता की गुफायें एवं उनकी चित्रकारियां, अनेक स्थानों से प्राप्त एवं संग्रहालयों में सुरक्षित बुद्ध एवं बोधिसत्वों की मूर्तियां आदि बौद्ध धर्म की भारतीय संस्कृति को अनुपम देन है। गन्धार, मथुरा, अमरावती, नासिक, कार्ले, भाजा आदि बौद्ध कला के प्रमुख केन्द्र थे। आज भी भारत के कई स्थानों पर बौद्ध स्मारक विद्यमान हैं तथा श्रद्धालुओं के आकर्षण के केन्द्र बने हुए हैं।
विश्व के देशों को अहिंसा, करूणा, प्राणिमात्र पर दया आदि का सन्देश भारत ने बौद्ध धर्म के माध्यम से ही दिया।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि शताब्दियों पूर्व महात्मा बुद्ध ने जिन सिद्धान्तों एवं आदर्शों का प्रतिपादन किया वे आज के वैज्ञानिक युग में भी अपनी