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कबीर का कालबोध और बौद्ध शून्यवाद
अमरनाथ पाण्डेय
बौद्ध दर्शन के शून्यवाद का प्रभाव कबीर काव्य पर आलोचक मानते हैं। शून्यवादियों का यह सिद्धान्त माध्यमिक दर्शन भी कहलाता है। नागार्जुन शून्यवाद को सैद्धान्तिक पूर्णता प्रदान करने वाले दार्शनिक माने जाते हैं। कबीर साहित्य के अन्तर्गत 'गगन' तथा 'शून्य' शब्दों के कई बार प्रयोग हुए हैं। 'शून्य' विष्णु सहस्रनाम के अनुसार भगवान नामों से एक हैं। बौद्धों की विचारधारों में इस शब्द को अधिक महत्व उस समय से मिलने लगा जबसे शून्यवाद का प्रचार हुआ। शून्यवाद के आधार पर जो इस शब्द की परिभाषा बतलाई गई वह भी तत्वतः इसके शून्य तत्व के अनिर्वचनीय होने की ओर संकेत करता है। कबीर 'शून्यमण्डल' का कई बार प्रयोग करते हैं। 'सुनि मंडल में घर किया' तथा 'सुनिमंडल में धरौंधियान' आदि।'
बुद्ध ने इस दर्शन को साधना के स्तर पर विकसित किया। उन्होंने जगत को दुःखमय माना और दुःख के कारणभूत चार आर्य सत्यों को आविष्कृत किया कि दुःख हैं, दुःख का कारण हैं, दुःख का अन्त हैं और दुःख दूर करने का उपाय है। बुद्ध दर्शन के आधार चार आर्य सत्य हैं, और उनमें सर्वप्रथम आर्य सत्य 'दुःखसत्य' हैं। 'दुक्खं अरियसच्चं। दुक्ख समुदयं अरियच्चं। दुक्खनिरोधं अरियसच्चं । दुक्खनिरोधगामिनी परिपदा अरियसच्चं।' ___जन्म भी दुःख है, वृद्धावस्था भी दुःख है, मरण भी दुःख है, शोक-परिदेवन दोर्मनस्य-उपासना भी दुःख है, अप्रिय का योग दुःख है, प्रिय का वियोग दुःख है, इच्छा की पूर्ति न होना दुःख है। इसी प्रकार शून्यवाद के अनुसार भी दुःख