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श्रमण-संस्कृति बस थोड़े से ही भिन्न हैं। बौद्धकाल में शवाधान के स्थान पर स्मारकों का उपयोग ज्यादा प्रचलित नहीं था लेकिन पूर्व बुद्धकाल में स्मारकों का निर्माण बहुतायत से होता था। आर्यों के स्मारक गुम्बदनुमा होते थे लेकिन बुद्धकाल में उन्हें ईंटों से बनाया जाने था। इस प्रकार के स्मारकों का निर्माण उन लोगों के द्वारा होता था जिन्होंने पुरोहित वर्ग से अपना नाता तोड़ लिया था और जो अपने शिक्षकों, सुधारकों तथा दार्शनिकों का सम्मान करना चाहते थे। इस संदर्भ में यह जानना भी बड़ा रुचिकर है कि उपर्युक्त विशिष्ट विद्वानों के सम्मान में स्मारक बनाए जाते थे। ये विद्वान जीवन की समस्याओं के समाधान में लगे होते थे और गंभीर चिंतन-मनन करते थे। इनके अतिरिक्त राजाओं, सेनानायकों, राजनेताओं या धनपतियों के स्मारकों का कोई प्रमाण इस काल में नहीं मिलता। चूंकि विद्वानों-चिंतकों के ये स्मारक पुरोहित वर्ग से अपना संबंध विच्छेद करने वाले व्यक्तियों द्वारा बनवाये जाते थे इसीलिए पुरोहित वर्ग के रिकार्ड में इनका कोई उल्लेख नहीं मिलता।
___ बौद्ध काल के नगरों में राजा, उसके प्रशासनिक अधिकारियों तथा विशिष्ट सैनिक वर्ग के अतिरिक्त व्यापारियों, व्यावसायियों, शिल्पियों, श्रमिकों, संगीतज्ञों तथा कलाकारों का वास होता था। सामान्यतः लोगों का जीवन संतोषपूर्ण होता था। आज के तनाव और संघर्ष कम ही थे। लोगों में भाईचारे और परस्पर विश्वास की भावना विद्यमान थी। लोग अपने घरों में ताले नहीं लगाते थे। भारत में अनेक पहाड़ी क्षेत्रों में आज भी इस प्रकार की सहजता, सरलता और परस्पर विश्वास की भावना पाई जाती है।
संदर्भ 1. बुद्धिस्ट इंडिया, टी० डब्ल्यु. राइस डेविड्स, दृष्टव्य पृ० 17 से 21 तक 2. सोशल डाइमेंशन ऑफ अर्ली बुद्धिज्म, उमा चक्रवर्ती, पृ० १ 3. दृष्टव्य, बुद्ध, धर्मानन्द कोशाम्बी (अनुवाद, श्री पाद जोशी) 4. दृष्टव्य, वही, पृ० 56 5. वही, पृ० 57 6. वही, पृ० 57 7. दृष्टव्य, वही, पृ० 39 8. बुद्धिस्ट इंडिया, टी० डब्ल्यु० राइस डेविड्स, दृष्टव्य पृ० 17 से 21 तक 9. बुद्धिस्ट इंडिया, टी० डब्ल्यु. राइस डेविड्स, दृष्टव्य पृ० 30 से 37 तथा पृ० 47 से 55