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श्रमण-संस्कृति 14. अवन्ती : बुद्धकाल में इस राज्य का शासक चंद प्रजोत था। इस प्रदेश
की भूमि बहुत उर्वर थी। आर्यों ने सिंधु घाटी से आकर इस प्रदेश को विजित किया था। सातवीं-आठवीं शती से इस प्रदेश को मालवा कहा
जाता है। 15. गांधार (कंधार): यह राज्य पूर्ववर्ती अफगानिस्तान का भाग है और
संभवतः पंजाब का उत्तर-पश्चिमी भाग इससे जुड़ा हुआ रहा है।
इसकी राजधानी तक्षशिला थी। 16. कम्बोज : गांधार से लगा हुआ यह प्रदेश धुर उत्तर-पश्चिम में स्थित
था। इसकी राजधानी द्वारिका थी। __ उपर्युक्त राज्यों में से मगध, कौशल, वत्स तथा अवन्ती एकसत्तात्मक राज्यों में प्रमुख थे और प्रथम तीन राज्य गांगेय क्षेत्र में स्थित थे। इन राज्यों में सदैव परस्पर संघर्ष होता रहता था। यह संघर्ष ही तत्कालीन राजनीतिक इतिहास का प्रमुख वैशिष्ट्य माना जाता है। बुद्धकाल में इन राज्यों में मगध
और कौशल अपने उत्कर्ष पर थे। इन दोनों राज्यों की एकसत्तात्मक शासनप्रणाली बड़ी सफल कही जा सकती है। दोनों राज्यों के राजा (मगध के बिंबसार तथा कौशल के प्रसेनदि (प्रसेनजित) बड़े उदार थे और जनता उनके राज्य में सुखी थी। यह सही है कि दोनों शासक यज्ञ आदि को प्रोत्साहन देते थे किन्तु राज्य में बौद्ध श्रवणों को अपने धर्म का प्रचार करने की पूरी स्वतंत्रता थी। वैसे राज्य-विस्तार के लिए इनके बीच आए दिन युद्ध भी होते रहते थे। इन युद्धों का विशेष उद्देश्य आर्थिक लाभ का अर्जन और राज्य-विस्तार ही होता था। बिंबसार के पुत्र अजातशत्रु ने कौशल नरेश प्रसेनजित के साथ लम्बे समय तक युद्ध किया। यद्यपि प्रसेनजित उसका चाचा था। इसी प्रकार अजातशत्रु ने बुद्ध के परिनिर्वाण के पश्चात् वज्जियों को भी ध्वस्त किया यद्यपि वज्जी की राजकुमारी उसके पिता बिम्बसार की पत्नी थी।
बुद्धकालीन उपर्युक्त 16 राज्यों में बुद्ध के शाक्य वंश का नाम नहीं आता। इसका कारण संभवतः यही है कि बुद्ध के जन्म से पूर्व ही शाक्यों के गणराज्य को कौशल के किसी एकसत्तात्मक नरेश ने विजित कर अपने में मिला लिया था। विजित होने के उपरान्त शाक्य कौशल नरेश को कर देते थे लेकिन आंतरिक शासन-व्यवस्था स्वयं देखते थे।