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भारतीय संस्कृति पर बौद्ध परंपरा का प्रभाव जितना उसकी निरंतरता। भारत में अस्वीकृति की प्रबल धारायें प्रवाहित हुयी हैं तथा विरोध और सुधार के प्रभावशाली आंदोलन भी हुए हैं। भारतीय समाज बदलते हुए ऐतिहासिक संदर्भो और आर्थिक तथा सामाजिक शक्तियों के समीकरणों से प्रभावित होता रहा है। वह परिस्थितियों से ऊपर उठता रहा है और विकसित होता रहा है। ___भारतीय इतिहास में छठी सदी ईसापूर्व का काल एक नूतन युगांतरकारी बौद्धिक एवं आर्थिक क्रांति के सूत्रपात का युग रहा है। इसी समय बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध का आर्विभाव हुआ जिसने संसार को सत्य एवं अहिंसा का वह संदेश दिया जो भव-व्याधि से पीड़ित मानव समाज के लिए वरदान हो गया। बुद्ध के संदेश उत्तुंग हिमगिरि तथा उत्ताल जलधि-तरंगों का अतिक्रमण कर अनेक देशों में प्रसारित हुए। उन्होंने धार्मिक जगत को संघीय जीवन पद्यति दी जिसका अवान्तरकालीन सम्प्रदायों में बड़ा प्रभाव पड़ा। बौद्ध धर्म ने भारतीय समाज में व्याप्त रूढ़ियों, कुरीतियों तथा अंधविश्वासों के प्रतिकार का मार्ग प्रशस्त किया। जातिवाद का सर्वप्रथम विरोध गौतमबुद्ध ने किया। उन्होंने वेद तथा ब्राह्मण की प्रभुता को चुनौती दी। उन्होंने धर्म-उपदेश जनता की भाषा में दिये अतः वे सभी के लिए बोधगम्य हो सके। ब्राह्मण ग्रन्थ दुरूह होने के कारण जनता के लिए दुर्बोध हो गये थे। अतः नवीन विचारों का जनमानस पर बड़ा अनुकूल प्रभाव पड़ा। बुद्ध के उपदेशों का राजा तथा जनता दोनों ने स्वागत किया।
एक धर्म के रूप में बौद्ध धर्म की महत्ता उसके करूणा, मानवता और समता सम्बन्धी विचारों के कारण है। बौद्ध धर्म एक आकस्मिक घटित व्यापार नहीं था। वैदिक यज्ञवाद और बुद्ध-पूर्व काल से लेकर बुद्ध के काल तक प्रचलित दार्शनिक चिंतनों की पृष्ठभूमि में बौद्ध धर्म का उदय हुआ। बुद्ध के जीवन और उनके उपदेशों की कथा जैसा कि वह पालि-ग्रंथों में वर्णित है, उनके देवत्व के स्थान पर उनकी मानवता पर अधिक आश्रित हैं। बुद्ध के कर्म-सम्बन्धी विश्वास का एक विशेष समाजशास्त्रीय महत्व है, क्योंकि वह व्यक्ति के अपने कर्म को उसके जन्म (जाति) से अधिक महत्व देता है। आगे चलकर बौद्ध धर्म मे एक महान परिवर्तन आया। नैतिक धर्म के अपने प्रारम्भिक