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भारतीय संस्कृति पर बौद्ध परंपरा का प्रभाव
ब्रह्मानंद सिंह
विश्व की सभ्यताओं के इतिहास के भारतीय सभ्यता की अपनी अलग पहचान एवं विशिष्ट महत्व है। यहाँ के दीर्घकालीन सांस्कृतिक परंपरा का विकास इतिहास के विभिन्न कालखण्डों में, अलग भौगोलिक क्षेत्रों में अनेक स्रोतों से हुआ। इसके संविन्यास में विविध रूपांकन, रंग और सूत्र प्रविष्ट हुए । प्रसिद्ध समाजशास्त्री श्यामाचरण दुबे भारतीय संस्कृति की व्याख्या करते हुए लिखते हैं : भारतीय संस्कृति एक सुगठित एकाश्म नहीं है और साथ ही उसमें अपरिवर्तनीय निरंतरता भी नहीं है। इसकी तुलना एक वृक्ष से करना भी उचित नहीं है, क्योंकि वह एक बीज से पैदा नहीं हुयी है और न इसकी साझी जड़ें और साझा तना है, न ही यह विकास के बाद निकलने वाली शाखाओं से सावयवी रूप से जुड़ी है। भारतीय संस्कृति की एक नदी के रूप में कल्पना कर पाना उचित होगा। अनेक स्रोतों धाराओं, छोटी नदियों आदि के भिन्न-भिन्न स्थानों पर मिलने से एक मुख्य धारा बनीं है और यह मुख्य विशाल धारा विभिन्न छोटी धाराओं की पहचान को छिपा नहीं पाती है जिनके जल से इनका निर्माण हुआ है। समकालीन भारतीय संस्कृति अपनी चित्रवर्ण योजनाओं में रंगों की विविधता के कारण अधिक समृद्ध है। यह सैकड़ों लोक रूपों और साथ ही अनेक उपसांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं का प्रतिनिधित्व करती है, जो प्रकार्यात्मक और संतुलित एवं सामंजस्य पूर्ण प्रतिरूपों में एक साथ घुल-मिल गये हैं।' वस्तुतः समकालीन भारतीय संस्कृति संश्लिष्ट और मिश्रित है । परिवर्तन भारतीय सांस्कृतिक परंपरा का उतना ही महत्वपूर्ण अंग है