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भारतीय संस्कृति पर बौद्ध एवं जैन धर्म का
प्रभाव
रेखा चतुर्वेदी एवं प्रमोद कुमार त्रिपाठी
भारतीय संस्कृति एक ऐसी सतत् प्रवाहमान धारा है, जिसमें अनेक संस्कृतियों, धार्मिक, मान्यताओं, कला परम्पराओं के तत्त्व समाहित हैं। साथ ही भारतीय संस्कृति के तत्त्व भी अनेक धार्मिक परम्पराओं एवं मान्यताओं को प्रभावित करते हैं । प्रस्तुत शोधपत्र में भारतीय संस्कृति पर बौद्ध एवं जैन धर्म के प्रभाव पर एक दृष्टि डालने का प्रयास किया गया है। शोधात्मक अन्वेषणात्मक गवेषणा में यह दृष्टिगत होता है कि जैन धर्म के नियतिवाद ने भारतीय संस्कृति पर एक गहरी छाप छोड़ी है। साथ ही जैन धर्म के मोक्ष के सिद्धान्त ने भी भारतीय धर्म एवं संस्कृति को काफी हद तक प्रभावित किया है। जैन धर्म के नियतिवादी की अवधारणा एक ऐसी अवधारणा है जिसके अनुसार इस चराचर जगत में जो भी घटनायें प्रघटनायें घटित हाती हैं, वह पूर्व निर्धारित होती हैं। भारतीय सांस्कृतिक परम्पराओं के अनुसार इसके पूर्व निर्धारण की दो स्थितियाँ हैं, जिसमें प्रथमतः दैवीय नियतिवाद है, जिसके अनुसार सम्पूर्ण सृष्टि में जो भी कुछ घटित होता है वह देवशक्ति के द्वारा निर्धारित होता है, नियन्त्रित होता है, संचालित होता है। इस मान्यता के अनुसार मानव इस शक्ति के समक्ष एक निरीह प्राणी है जो दैवीय शक्ति द्वारा निर्धारित अपने भाग्य को नियति के रूप में स्वीकार करता है । परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि मानव कर्मरहित हो । जैन धर्म ने कर्म के महत्ता को स्वीकार करते हुए दैवीय स्थिति को स्वीकार करने पर बल दिया है। भारतीय संस्कृति की ब्राह्मण परम्परा भी इसी प्रकार का